भवन निर्माण के विज्ञान के लिए रचित शास्त्र ‘वास्तु शास्त्र’ ज्योतिष शास्त्र का ही एक विकसित भाग है | ज्योतिष शास्त्र और वास्तु शास्त्र न सिर्फ एक दुसरे के पूरक है बल्कि दोनों के बीच में एक गहरा सम्बन्ध भी हैं | जहाँ ज्योतिष एक वेदांग है तो वही वास्तु शास्त्र अथर्ववेद के एक उपवेद स्थापत्य वेद पर आधारित है | दोनों ही प्राचीनकाल में विकसित हुए विज्ञान है | इनका प्रयोजन प्रकृति के छिपे हुए रहस्यों को समझकर मानव जीवन को बेहतर करना रहा है |
वास्तु और ज्योतिष दोनों में ही मानव पर पड़ने वाले सृष्टि के प्रभावों का अध्ययन किया जाता है | ज्योतिष में जहाँ प्रत्यक्ष तौर पर व्यक्ति की कुंडली के जरिये यह अध्ययन किया जाता है तो वही वास्तु में भी भवन की संरचना का व्यक्ति के अचेतन मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है |
इस लेख में वास्तु और ज्योतिष से सम्बंधित निम्न चीजों के बारे में जानकारी दी गई है –
1- ज्योतिष शास्त्र और वास्तु शास्त्र क्या है ?
2- जन्म कुंडली और भवन की संरचना |
3- ज्योतिष में नौ ग्रह और वास्तु शास्त्र में विभिन्न दिशाओं में उनके स्थान |
4- ग्रहों के अनुसार वास्तु में विभिन्न कक्षों के लिए निर्धारित दिशाएं |
5- ज्योतिष और वास्तु शास्त्र में कौन ज्यादा प्रभावी है ?
1- ज्योतिष शास्त्र और वास्तु शास्त्र क्या है ?
ज्योतिष का शाब्दिक अर्थ ईश्वरीय प्रकाश से है | ज्योतिष छः वेदांगों (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष, छन्द) में से एक है | ये वेदांग हिन्दू धर्म ग्रन्थ है | वेदों के अध्ययन में सहायक ग्रन्थों को वेदांग कहा जाता है | छन्द को वेदों के पैर, कल्प को हाथ, निरुक्त को कान, शिक्षा को नाक, व्याकरण को मुख और ज्योतिष को नेत्र कहा गया है |
चूँकि ज्योतिषशास्त्र के जरिये हम भूतकाल, वर्तमान और भविष्यकाल का दर्शन कर पाते है इसलिए इसे वैदिक शरीर में आँखों का सूचक माना गया है | वेदमंत्रो में वर्णित नक्षत्रों को उचित रूप से समझने के लिए ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान की आवश्यकता है|
ज्योतिष शास्त्र के समान ही वास्तु शास्त्र के जरिये भी किसी के घर का अध्ययन करके उसके भूतकाल, वर्तमान और भविष्यकाल के सम्बन्ध में जानकारी दी जा सकती है | किसी भवन विशेष में वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों की सहायता से आसपास के वातावरण और सृष्टि में मौजूद उर्जाओं के मध्य समन्वय स्थापित कर उस भवन को श्रेष्ट परिणाम देने के लिए निर्मित किया जाता है |
ज्योतिष के समान वास्तु में भी प्राकृतिक शक्तियों में संतुलन को साधने का कार्य किया जाता है | दोनों ही प्राचीन विद्याओं का लक्ष्य मानव जीवन को बेहतर बनाना है हालाँकि इस लक्ष्य को साधने के लिए दोनों के अपने अलग-अलग नियम और सिद्धांत है | [ बेहतरीन करियर के निर्माण हेतु बेहद उपयोगी वास्तु टिप्स इस लिंक पर क्लिक करके पढ़े - @Career-Vastu ]
2- जन्म कुंडली और भवन की संरचना –
जन्म कुंडली एक व्यक्ति पर जन्म के वक्त ब्रह्माण्ड में मौजूद उर्जाओं, नक्षत्रों, ग्रहों द्वारा उसके अचेतन पर अंकित होने वाले सर्वप्रथम और सर्वाधिक महत्पूर्ण प्रभावों और उनके परिणामों का लेखा-जोखा है | एक व्यक्ति की कुंडली बनाने के लिए उसके जन्म का वक्त चुनने के पीछे एक बहुत महवपूर्ण वजह है |
दरअसल एक बच्चे के जन्म का वक्त बहुत ही संवेदनशील होता है क्योंकि किसी बच्चे के जन्म के समय उसका चित अत्यधिक ग्रहणशील होता है और उस दौरान उसके चित पर ब्रह्माण्डीय उर्जाओं और ग्रहों की जो निश्चित स्थिति अंकित होती है उससे उस नवजात बच्चे का अचेतन मस्तिष्क आजीवन सम्बद्ध हो जाता है | जब एक बच्चा जन्म लेता है उस वक्त ब्रह्माण्ड में कई बेहद शक्तिशाली घटनाएँ घट रही होती है | कई नक्षत्र सूर्य के समान उग रहे होते है या डूब रहे होते है | इस प्रकार की प्राकृतिक और अत्यधिक वृहद् पैमाने पर घटने वाली घटनायें बच्चे के चित्त पर एक स्थायी प्रभाव डालती है |
अब सवाल उठता है कि यह कैसे कहा जा सकता है कि ब्रह्माण्ड में घटने वाली घटनायें पृथ्वी और इस पर रहने वाली प्राणियों को प्रभावित करती है ? कैसे पृथ्वी से सुदूर स्थित ग्रह हमें प्रभावित करते है ? तो इन सवालों के कई जवाब है हालाँकि हम यहाँ इसे एक छोटे से उदाहरण से समझेंगे |
दरअसल हम सभी पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह चाँद से तो परिचित है ही | इसके अलावा इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि पानी के बिना पृथ्वी पर जीवन की सम्भावना नहीं है | तो यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि चंद्रमा पृथ्वी पर मौजूद समुद्र के पानी को प्रभावित करता है लेकिन हम इस बात पर गौर नहीं करते हैं कि समुद्र में पानी और नमक का जो अनुपात है लगभग वही अनुपात मनुष्य के शरीर में विद्यमान पानी का भी है |
यही नहीं बल्कि पृथ्वी पर मौजूद पानी और शरीर में मौजूद पानी का भी लगभग समान ही अनुपात है | तो फिर चन्द्रमा से जब समुद्र का पानी प्रभावित होता है तो दुनिया में रह रहे 7 अरब मनुष्यों के भीतर विद्यमान जल क्यों प्रभावित नहीं होगा | और मनुष्य के शरीर में स्थित वो तत्व जो कि जीवन के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है अगर उसमे कुछ बदलाव आता है तो निश्चित ही यह बदलाव मनुष्य के आचरण, उसके सोचने-समझने की शक्ति इत्यादि पर भी देखने को मिलेगा |
गौरतलब है कि अंग्रेजी के शब्द Lunar का इस्तेमाल चंद्रमा के लिए किया जाता है और इसी lunar शब्द से बना है Lunatic जिसका अर्थ होता है मानसिक रूप से बीमार या चांदमारा | निश्चित ही इस शब्द की उत्पति आज से लगभग तीन हजार साल पहले चाँद के मनुष्यों और अन्य प्राणियों पर पड़ने वाले प्रभाव के मद्देनजर ही हुई होगी |
यानि कि प्राचीन काल में भी लोगो को इस बात का अंदाजा था कि चंद्रमा व्यक्ति के मन को प्रभावित करता है और इसी कारण ऐसा देखा गया है कि पूर्णिमा के दिन दुनियाभर में ना सिर्फ मानव बल्कि अन्य प्राणियों की हरकतों में भी सुक्ष्म और स्थूल दोनों ही रूपों में बदलाव देखने को मिलता है | और जब चाँद जैसा लगभग मात्र 1731 km Radius में फैला छोटा सा प्राकृतिक उपग्रह पृथ्वी और इसके प्राणियों को इतना प्रभावित कर सकता है तो फिर कोई संदेह नहीं रह जाता कि चाँद से कई गुना बड़े, बेहद विशाल और शक्तिशाली ग्रह भी निश्चित ही हमारे दिमाग, व्यव्हार, क्षमताओं पर अपना प्रभाव डालेंगे |
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इसीलिए यह तो तय है कि सृष्टि में उपस्थित विभिन्न प्राकृतिक शक्तियों और उर्जाओं से हम प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष, स्थूल और सुक्ष्म रूप से निरंतर प्रभावित हो रहे है | कुछ मामलों में हमें यह प्रभाव स्पष्ट तौर पर ज्ञात हो जाता है और कुछ घटनाओं से हमारा चेतन मन (conscious mind) अनभिज्ञ रहता है | ऐसे में ज्योतिष और वास्तु शास्त्र अपने-अपने सिद्धांतों और नियमों से प्रभावों को जानने में तो मददगार होते ही है साथ ही अगर कोई नकारात्मक प्रभाव हो तो उसे सीमित करने, समाप्त करने या उसे सकारात्मक प्रभाव के रूप में बदलने में भी अत्यंत सहायक होते है |
3- ज्योतिष में नौ ग्रह और वास्तु शास्त्र में विभिन्न दिशाओं में उनके स्थान–
वैदिक ज्योतिष के अनुसार नौ ग्रहों का पृथ्वी और इस पर निवास करने वाले प्राणियों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है | ये नौ ग्रह इस प्रकार है – सूर्य (Star), चंद्रमा (Earth's Only Natural Satellite), मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु | ये नौ ग्रह ज्योतिष और वास्तु के अनुसार हमारे जीवन को बेहद प्रभावित करते है जिसे हम संक्षिप्त में इस प्रकार से समझ सकते है -
सूर्य (सिंह राशि) –
पृथ्वी के लिए जीवनदायिनी, अंतरिक्ष में निकटम तारा, पांचवी राशि सिंह का स्वामी गृह सूर्य वास्तु शास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा को शासित करता है | सूर्य योद्धा, आँख, हृदय, स्वास्थ्य, आरोग्य, पिता, अग्नि तत्व, गेंहू, ताम्बा, माणिक, आत्मा, मन्त्रों का उच्चारण, सृजनात्मकता, प्रशासक, तानाशाही, सत्ता, अहंकार, कुलीन वर्ग इत्यादि का कारक है |
वास्तु में सूर्य भव्य इमारतों, महान सभागार, फलों वाले पेड़, घास, जंगल, पक्का घर, लाल रंग की मिट्टी, प्रकाश व्यवस्था, चिकित्सक कक्ष, ऊँचे घर व खुली जगहों इत्यादि का प्रतीक है |
यदि किसी जातक की कुंडली में सूर्य दोषपूर्ण हो या फिर घर की पूर्व दिशा में कोई वास्तु दोष हो तो उसके कुछ नकारात्मक परिणाम होते है जैसे कि – पिता के साथ सम्बन्ध ख़राब होना, सरकार द्वारा उत्पन्न समस्याएं, आँख, त्वचा, हड्डियों, ह्रदय व सिरदर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | वही सूर्य के शुभ होने पर ख्याति, सरकारी पक्ष से सहायता, स्वास्थ्य, सम्मान इत्यादि में वृद्धि होती है |
चंद्रमा (कर्क राशि) –
चंद्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह, चौथी राशि कर्क का स्वामी और वायव्य दिशा (उत्तर-पश्चिम) को शासित करने वाला ग्रह है | चंद्रमा मन, दिमागी स्थिति, मानसिक स्वास्थ्य, चंचल और परिवर्तनशील स्वाभाव, सत्व गुण, माता, स्त्रीलिंग, आलसीपन, फेफड़ों की समस्याओं, कृषि, पशुपालन, स्मरणशक्ति, संवेदनशीलता, कल्पनाशक्ति इत्यादि का कारक है |
वास्तु में चंद्रमा वायव्य दिशा, रसोई, अनाज का गोदाम, पशुपालन, सफ़ेद मिट्टी, अतिथि कक्ष, जलमय स्थान, स्त्रियों के निवास इत्यादि जगहों का प्रतीक है |
मंगल (मेष और वृश्चिक राशि) –
लाल रंग का मंगल ग्रह बाहरी ग्रहों में प्रथम, मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी ग्रह, और दक्षिण दिशा को शासित करने वाला ग्रह है | बहादुरी और साहस का स्वामी ग्रह मंगल गहरे लाल रंग, सेनापति, क्षत्रिय, छाती, अग्नि तत्व, पित्त, उत्तेजक, गर्मी और उर्जा, धातु सम्बन्धी पेशे, शल्य चिकित्सक, निर्माण कार्य, जासूसी, हिंसा, गुस्सा, भाई, रक्त एवं शक्ति इत्यादि का कारक है |
वास्तु में मंगल ग्रह दक्षिण दिशा, लाल रंग, शयन कक्ष, नुकीले कोने, पत्थर और टीले, ठोस दीवारें, छत, घर, मिट्टी, मिट्टी के बर्तन, भूमि इत्यादि को दर्शाता है |
बुध (मिथुन एवं कन्या राशि) –
सूर्य के सबसे निकट का ग्रह बुध मिथुन और कन्या राशि का स्वामी ग्रह, और उत्तर दिशा को शासित करने वाला ग्रह है | बुध ग्रह हरे रंग, फलरहित हरे वृक्ष, छोटे पौधे, हरा पन्ना, तर्कसंगत बुद्धि, अध्ययन और शिक्षा, ज्योतिषशास्त्र, संचार, वाणी, कूटनीतिज्ञता, रजस गुण, चतुराई, त्वचा, मामा, युवक, हस्तकला, कर्मकांड, अंकशास्त्र, कानून और व्यवसाय का स्वामी ग्रह है |
वास्तु में बुध गृह उत्तर दिशा, बैठक, अतिथि कक्ष, लेखा कार्य, खेलने का मैदान, पुस्तकालय, अध्ययन कक्ष, पढने की मेज, बाग-बगीचे इत्यादि को दर्शाता है |
बृहस्पति (धनु और मीन राशि) –
सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति धनु और मीन राशि का स्वामी और उत्तर-पूर्व दिशा को शासित करने वाला ग्रह है | बृहस्पति ग्रह ज्ञान और भाग्य, मानवीय दृष्टिकोण, सकारात्मक प्रवृति, सत्व गुण, अध्यापन, धार्मिक शिक्षा, उपदेश, दर्शन, तीक्ष्ण बुद्धि, अच्छी सलाह, विकास और विस्तार का कारक ग्रह है |
वास्तु में बृहस्पति उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान), पूजा और उपासना स्थल, ब्रह्मस्थान, ध्यान कक्ष, हवन, शिक्षकों, धार्मिक नेताओं, कुलीनों के निवास स्थान इत्यादि का प्रतीक है |
शुक्र (वृषभ और तुला राशि) -
भोर और संध्या के तारे के रूप में प्रसिद्ध शुक्र ग्रह वृषभ और तुला राशि के स्वामी, और दक्षिण-पूर्व दिशा को शासित करने वाला ग्रह है | शुक्र ग्रह सुन्दरता, कला, स्त्री, वात व कफ, जननेन्द्रियों, प्यार और स्नेह, रूचि, रजस गुण, चेहरा, मिलनसार स्वाभाव, साहित्य, संगीत, सांसारिक सुख, जीवनसाथी, पोशाक, जेवरात, वाहन, इत्यादि का कारक है |
वास्तु में शुक्र ग्रह दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) दिशा, रसोई, सुंदर वस्त्र और वस्तुएं, वाहन, अच्छा भोजन, संगमरमर, सफ़ेद रंग की वस्तुएं, पक्का सुंदर घर, सजावटी सामान इत्यादि को दर्शाता है |
शनि (मकर और कुम्भ राशि) –
सौरमंडल में पांच ऐसे ग्रह है जिन्हें बिना किसी दूरदर्शी उपकरण की सहायता से देखा जा सकता है | ऐसे ग्रहों में शनि अंतिम ग्रह है | शनि को मकर और कुम्भ राशि का स्वामी और पश्चिम दिशा को शासित करने वाला ग्रह कहते है | शनि ग्रह आयु, शक्ति, नौकर, अनुशासन, जिम्मेदारी, कठोर दिल और निर्मम स्वाभाव, अलगाव, अवरोध, संधर्ष, नीलम, तमस, काला रंग, शिशिर ऋतु, इत्यादि का कारक हैं |
वास्तु में शनि ग्रह पश्चिम दिशा, भोजन कक्ष, छिपे हुए या रहस्यमय स्थान, अँधेरे कमरे, कोयला, ऊँची-नीची भूमि, लोहे की वस्तुएं इत्यादि को दर्शाता है |
राहु –
क्रूर ग्रह के रूप में जाना गया राहु दक्षिण-पश्चिम दिशा का स्वामी ग्रह है | यह अन्य ग्रहों से भिन्न एक प्रकार का छाया ग्रह है | राहु ग्रह कल्पनाशीलता, दिव्यदृष्टि, पलायनवृति, विदेश यात्रा, लम्बी यात्रा, विष, लत, भ्रम, पहाड़ी और दुर्गम रास्ते, जुआ, विशाल जनसंपर्क, विदेशी भाषा, गुप्त योजना, गुह्य या रहस्यमयी ज्ञान, मनोविज्ञान, तमस इत्यादि का कारक ग्रह है |
वास्तु में राहु ग्रह दक्षिण-पश्चिम दिशा (नैऋत्य), अस्त्र-शस्त्र भंडार ग्रह, काली मिट्टी, राख, कोयला, बर्तन, गुफा, सुरंग, कब्रिस्तान, जल रहित बड़े गड्ढे, सर्पयुक्त भूमि, शौचालय, नीची छत वाले कमरे, कम रोशनी, दीवारों पर पपड़ी आना, टूटी हुई वस्तुएं, सड़के और पहिये, बड़े दरवाजें इत्यादि को दर्शाता है |
केतु –
राहु के समान ही केतु को भी एक क्रूर ग्रह के रूप में जाना जाता है | बृहस्पति के साथ ही केतु को भी उत्तर-पूर्व दिशा का स्वामी माना गया है | यह भी राहु के समान ही एक और अन्य छाया ग्रह है | केतु आध्यात्मिक ज्ञान की आकांक्षा, रजस, उग्र स्वाभाव, कट्टरता, पूर्वाभास, सन्यांस, आत्मज्ञान, गुह्य विद्या, ना पहचाने जा सकने वाले रोग, वायरल रोग, शल्य-चिकित्सा, सनकीपन, विष, मंगल समान व्यव्हार, प्रवास, विदेशी भूमि या भाषा, इत्यादि का कारक है |
वास्तु में केतु ग्रह उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान), भीड़ भरी जगहें, नाला, गड्ढे, कूड़ा-करकट, छोटे दरवाजें, कुएं, नल, बेलें और घास इत्यादि को दर्शाता है |
4- ग्रहों के अनुसार वास्तु में विभिन्न कक्षों के लिए निर्धारित दिशाएं -
5- ज्योतिष और वास्तु शास्त्र में कौन ज्यादा प्रभावी है ?
वास्तु और ज्योतिष दोनों ही शास्त्र ग्रहों और ब्रह्माण्डीय उर्जाओं का मनुष्यों पर पड़ने वाले शुभ-अशुभ प्रभावों का अध्ययन करते है | मनुष्य की कुंडली उसके जीवन में घटित होने वाली घटनाओं, उसके व्यक्तित्व, जीवन में होने वाले संघर्ष या जिंदगी की गुणवत्ता के सम्बन्ध में पूर्वसुचना प्रदान करती है तो वही निवास के लिए निर्मित भवन की संरचना भी व्यक्ति के जीवन के उतार-चढाव, सफलता और असफलता इत्यादि के बारे में जानकारी प्रदान करती है | दोनों प्राचीन विद्यायें जहाँ समस्याओं का तो पता लगाती ही है वही इनके समाधान के लिए सर्वोत्तम उपाय भी बताती है |
वैदिककालीन शास्त्र ज्योतिष और वास्तु दोनों का प्रभाव एक-दुसरे पर स्पष्टतया देखा जा सकता है | उदाहरण के लिए ज्योतिष में एक व्यक्ति की कुंडली में जो ग्रह कमजोर होंगे वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार उन ग्रहों से शासित दिशाओं के निर्माण में वास्तु दोष निर्मित हो जायेंगे |
ठीक उसी प्रकार से वास्तु अनुसार निर्मित भवन व्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ परिणाम तो देगा लेकिन वे परिणाम साधारणतया उस व्यक्ति की कुंडली में लिखित संभावनाओं से ज्यादा नहीं मिल पाएंगे जब तक कि कुछ असाधारण उपाय नहीं अपनाये जाये | अतः दोनों विद्याओं को परस्पर एक-दुसरे का पूरक माना जा सकता है |
दोनों ही शास्त्रों में विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए अपने-अपने तरीके से ब्रह्माण्डीय उर्जाओं के नकारात्मक प्रवाह को सकारात्मक प्रवाह में परिवर्तित किया जाता है | ज्योतिष और वास्तु में विद्यमान सिद्धांतों का स्वाभाव एक दुसरे के विपरीत होने के बजाय परस्पर सहयोग करने वाला और शुभ प्रभावों में वृद्धि करने वाला है | अतः यह बेहतर होगा कि दोनों के ही समाधानों को लागू किया जाए जिससे कि व्यक्ति सर्वोत्तम नतीजे प्राप्त कर सके |
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