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वास्तु शास्त्र का विज्ञान| Science Of Vastu Shastra|

Feb 24, 2018 . by Sanjay Kudi . 43005 views

logic and science of vastu

प्रकृति पर हमारा नियंत्रण नहीं है लेकिन प्रकृति की शक्तियों का मानव के मन, मस्तिष्क पर जो प्रभाव पड़ता है उस पर निश्चित ही नियंत्रण किया जा सकता है | और ऐसा करने के लिए सबसे कारगर उपायों में से एक है प्राचीनकालीन ‘वास्तु शास्त्र’ का विज्ञान |

वास्तु शास्त्र वातावरण में उपस्थित नैसर्गिक उर्जाओं के संतुलित प्रवाह को सुनिश्चित करने का एक तार्किक विज्ञान है | वास्तु के नियम कई प्राकृतिक सिद्धांतों पर आधारित होते है जैसे कि – सूर्य की गति, पृथ्वी का घूर्णन, पृथ्वी पर उपस्थित विधुत चुम्बकीय उर्जा, सौर उर्जा इत्यादि |

दरअसल हम सभी मानव एक असीमित शक्ति से प्रभावित होकर कार्य करते है | कुछ प्राकृतिक शक्तियां है जो निरंतर हमारा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर मार्गदर्शन करती है | आपको इस बात का अनुमान भी नहीं होगा कि आपके जीवन में जो भी चीजे आ रही है उन्हें आप और आपका अवचेतन मन निरंतर आकर्षित कर रहा है | और आपके इस अवचेतन मन को आपके आसपास मौजूद उर्जाएं हर समय प्रभावित कर रही है |

गौरतलब है कि जिस प्रकार से पृथ्वी पर उपस्थित गुरुत्वाकर्षण प्रत्येक वस्तु को अपनी और आकर्षित करता है | उसी प्रकार से हम जिन भवनों में काम करते है या जिनमे हम रहते है वे सभी भवन भी एक चुम्बक की तरह काम करते है | एक ऐसे चुम्बक की तरह जो की दुनिया में मौजूद उर्जाओं को अपनी और आकर्षित करते है | लेकिन वे अच्छी वस्तुओं को अपनी और आकर्षित कर रहे है या बुरी इस बात को उस भवन का वास्तु तय करता है |

वास्तु शास्त्र के विज्ञान को समझने के लिए हम यहाँ मुख्य रूप से चार बेहद महत्वपूर्ण चीजों का अध्ययन करेंगे –

  • मस्तिष्क और अवचेतन मन

  • घर का वास्तु और ब्रह्मांडीय उर्जायें

  • कार्य-कारण का सिद्धांत और वास्तु

 

1- मस्तिष्क (Brain) और अवचेतन मन (Subconscious Mind)

मस्तिष्क में चलने वाले विचार ही हमारे जीवन का निर्माण करते है | हालाँकि दिमाग में किस प्रकार के विचार चलेंगे, किस दिशा में विचार चलेंगे, विचार सकारात्मक होंगे या नकारात्मक होंगे इसमें हमारे आसपास के माहौल की एक बड़ी भूमिका होती है |

गौरतलब है कि हमारे मस्तिष्क का Hippocampus Region मानव मस्तिष्क का एक बेहद महत्वपूर्ण भाग होता है | यह हमारे Limbic System से जुड़ा होता है |

मस्तिष्क का यह भाग मुख्यतः दीर्घकालीन स्मृति, Spatial Navigation और भावनाओं के नियंत्रण से सम्बद्ध मस्तिष्क का एक अहम भाग है | यह भाग नयी चीजों को याद रखने और सीखने की क्षमता से भी सम्बंधित है |

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मस्तिष्क का यह हिस्सा हमारे आसपास के वातावरण विशेषकर वो स्थान जहाँ पर हम लम्बे समय से निवास कर रहे है ऐसे क्षेत्र से बहुत प्रभावित होता है | वैज्ञानिक शोधों में यह देखा गया है कि मस्तिष्क के Hippocampus Region में विद्यमान कुछ निश्चित सेल्स या कोशिकाएं अपने आप को उस माहौल के अनुसार ढाल लेती है जिस स्थान पर एक व्यक्ति लम्बे समय तक निवास करता है या कार्य करता है |

लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर मस्तिष्क अपने आसपास की चीजों से क्यों प्रभावित होता है ? उसके विचारों पर उसके आसपास का वातावरण क्यों प्रभाव डालता है ?

इसे समझने के लिए पहले हमें सरल भाषा में यह समझना होगा कि मस्तिष्क की प्रोग्रामिंग कैसे होती है और यह कौन करता है ? दरअसल हमारा मस्तिष्क एक ऐसे हार्डवेयर की तरह है जिसका प्रोग्रामिंग उसका रहस्यमयी अवचेतन मन (Subconscious Mind) करता है |

यह अवचेतन मन बेहद शक्तिशाली होता है और हमारी जिंदगी का अधिकांश हिस्सा इसी से प्रभावित होता है | यह चेतन मन (Conscious Mind) से अलग होता है |

चेतन मन मनुष्य की चेतना का वह हिस्सा है जिसमे चलने वाले विचारों के प्रति हम होशपूर्ण होते है और उनके प्रति हम सजग होते है | यह हमारे मन (Mind) की क्षमताओं का एक बहुत छोटा सा हिस्सा होता है | मन का सबसे प्रभावशाली हिस्सा वह होता है जिसके प्रति हम सजग नहीं होते है लेकिन वह निरंतर हमारे जीवन स्वरुप और दिशा तय करता है | इसे हम अवचेतन मन (Subconscious Mind) के नाम से जानते है |

इसे अगर एक उदाहरण से समझे तो आसान होगा | हमारे चेतन मन और अवचेतन मन की स्थिति एक हिमखंड या आइसबर्ग की तरह होती है जिसका 10 प्रतिशत हिस्सा पानी से बाहर होता है और 90 प्रतिशत हिस्सा पानी के अंदर होता है और दिखाई नहीं पड़ता है | पानी के बाहर स्थित भाग हमारे चेतन मन को दर्शाता है जो कि तर्क पर आधारित होता है लेकिन अंदर स्थित भाग हमारे अवचेतन मन को दर्शाता है जो की हमारे आसपास के वातावरण से प्रभावित होकर कार्य करता है |

वही अचेतन मन (Unconscious Mind) विचारों और स्मृतियों का अवचेतन मन (Subconscious Mind) से भी गहरा तल है | हालाँकि हमारी जिंदगी में सर्वाधिक प्रभाव हमारे अवचेतन मन का पड़ता है | यही हमें मिलने वाली सफलता-असफलता, खुशहाली और संघर्ष तय करता है |    

चूँकि मनुष्य की चेतना का अधिकांश हिस्सा (लगभग 90 प्रतिशत) यही अवचेतन मन है अतः यही हमारे मस्तिष्क को सर्वाधिक प्रभावित करता है | गौतम बुद्ध ने इस अवचेतन मन को ‘स्मृति-आलय’ (Store House of Memory) कहा है क्योंकि हमारे सारे अनुभव, जानकारी हमारे अवचेतन में संचित रहते हैं | 

हम जैसा बीज अपने अवचेतन में बोएँगे वैसा ही फल हमें प्राप्त होगा | यानी कि जिस प्रकार का माहौल व वातावरण हम इसे प्रदान करेंगे उसी तरह के विचारों को यह हमारे मस्तिष्क में आकर्षित करेगा | इसलिए प्रत्येक विचार एक कारण है एवं प्रत्येक दशा एक प्रभाव है | इसी कारण, यह आवश्यक है कि हम अपने विचारों को ऐसा बनाएँ ताकि हम इच्छित स्थिति को प्राप्त कर सकें | 

 

2- घर का वास्तु और ब्रह्मांडीय उर्जायें –

 

गौरतलब है कि वास्तु शास्त्र ब्रह्माण्ड के नैसर्गिक सिद्धांतों पर आधारित विज्ञान है | वास्तु शास्त्र के अनुसार ब्रह्माण्ड में दो तरह की उर्जाये होती है जो कि शक्ति में समान लेकिन चरित्र में एक दुसरे से विपरीत होती है | पृथ्वी के वातावरण में ये दोनों उर्जाये उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम की और निरंतर प्रवाहित रहती है |

लेकिन जब पृथ्वी पर किसी तरह का निर्माण किया जाता है तो उनके प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है | वे उर्जाये उस भवन में भी प्रवेश करती है और उस भवन की बनावट से ही ये तय होता है कि उसमे उन दोनों उर्जाओं का संतुलन किस प्रकार का रहेगा | उर्जाओं के उस प्राकृतिक प्रवाह में पुनः उचित संतुलन स्थापित करने के लिए किसी भी तरह के भवन का निर्माण कुछ विशिष्ट नियमो के आधार पर ही किया जाता है | और इन नियमो के आधार पर हम घर में पंच तत्वों का संतुलन प्रकार से स्थापित करते है|

ध्यान देने वाली बात है कि मानव शरीर जिन पांच तत्वों से निर्मित है, उसी प्रकार विश्व की प्रत्येक वस्तु भी उन्ही पांच तत्वों से निर्मित है | हमारे शरीर में इन पंच तत्वों में असंतुलन आता है तो हमारा शरीर बीमार पड़ जाता है वैसे ही जब हमारे द्वारा निर्मित किसी भवन में मौजूद पंच तत्वों में असंतुलन आता है तो वो भी बीमार पड़ जाता है जिसका असर उसमे निवास कर रहे लोगो पर पड़ता है | और वास्तु के जरिये इन्ही पंच तत्वों में संतुलन स्थापित किया जाता है|

वास्तु शास्त्र मूलतः इन पंच तत्वों पर आधारित है – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश |

वास्तु के सिद्धांत किस प्रकार से वैज्ञानिक तरीके से काम करते है इसे हम एक उदाहरण के जरिये समझ सकते है | प्राचीनकाल में वास्तु के विद्वानों ने एक महत्वपूर्ण सिद्धांत का प्रतिपादन किया था कि -

“ईशान कोण (NE) को सदैव खुला छोड़ना चाहिए और इस स्थान ( उत्तरी ईशान कोण or NNE) पर भूमिगत जलाशय का निर्माण करना चाहिए | “

दरअसल इस सिद्धांत के पीछे एक वैज्ञानिक तर्क है कि सुबह के वक्त सूर्य से स्वास्थ्य के लिए लाभदायक ultra violet rays निकलती है | और ये किरणें स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक होती है| ये ultra voilet rays पानी में उपस्थित हानिकारक कीटाणुओ का नाश करती है | और हमारे घरों में लगे विभिन्न water purifiers में भी पानी को शुद्ध करने और उसमे उपस्थित कीटाणुओ को नष्ट करने के लिए इसी ultra voilet rays का उपयोग किया जाता है |

यही कारण है कि वास्तु में ईशान कोण (NE) को खुला छोड़ने की बात करी जाती है जहां पर ये किरणें पड़ती है जो की प्राकृतिक रूप से ही पानी को शुद्ध करने का कार्य करती है तथा सूर्य की सात्विक उर्जा से घर के लोगो को स्वस्थ रखती है | (नोट: पानी के जलाशय का निर्माण उतरी ईशान कोण (NNE) में किया जाना चाहिए )

इसी प्रकार वास्तु में भवन निर्माण के वक्त उन तमाम बातों का ख्याल रखा जाता है जिससे की प्रकृति में विद्यमान सभी पंच तत्वों का सामंजस्य स्थापित हो ताकि घर में सात्विक उर्जा प्रवाहमान रहे | और ऐसे घर में निवास कर रहे व्यक्ति का अवचेतन मन का तारतम्य इस जगत की चेतना के साथ स्थापित हो सके |

गौरतलब है कि एक सफल आदमी और असफल आदमी दोनों का ही अवचेतन मन एक निश्चित फ्रीकवेंसी पर काम करता है | जहाँ सफल आदमी का अवचेतन यूनिवर्स के साथ हार्मोनी में होता है वही असफल व्यक्ति का अवचेतन हार्मोनी में नहीं होता है, उसका कोई तालमेल नहीं होता है | और जब आपका तालमेल इस जगत में उपस्थित उर्जाओं के साथ नहीं बैठता है तो फिर कई तरह की समस्याएँ जीवन में आती है |

एक अच्छे वास्तु से बना घर आपके अवचेतन मन को उस फ्रीकवेंसी पर लाने का काम करता है जहाँ उसका तारतम्य सृष्टि की चेतना के साथ बैठ जाता है | 

 

3- कार्य-कारण का सिद्धांत और वास्तु

 

हर घटना के पीछे एक कारण होता है | इस सम्बन्ध में गौतम बुद्ध ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत दिया था जिसे कार्य-कारण के सिद्धांत के रूप में जाना जाता है | इस सिद्धांत के अनुसार हर कार्य या घटना के पीछे कोई कारण अवश्य होता है |

जब भी आप जीवन में किसी तरह का निर्णय लेते है तो उसके पीछे कुछ न कुछ कारण होगा | कभी यह कारण स्पष्ट होगा और कभी अस्पष्ट लेकिन अकारण कोई घटना घटित नहीं होती है|

आपका घर भी इस कार्य-कारण सिद्धांत का अपवाद नहीं है और वह भी इससे प्रभावित होता है | तो ऐसे में आपको ध्यान देना होगा कि आप अपने घर में किसी कमरे का निर्माण किसी दिशा विशेष में ही क्यों करते है, आप किसी वस्तु या चीज को किसी स्थान या दिशा विशेष में ही क्यों रखते है किसी ओर जगह पर क्यों नहीं ? क्यों आपका अवचेतन मन आपसे इस तरह का कार्य कराता है ?

इस कार्य का कारण होगा ब्रह्मांडीय उर्जायें और उनका आप पर प्रभाव | जब एक व्यक्ति जन्म लेता है तो उस वक्त कि नक्षत्रों की स्थिति उस व्यक्ति के संवेदनशील चित पर अंकित हो जाती है और यह उसे जीवन भर अच्छे या बुरे रूप में प्रभावित करती है जब तक कि इस सम्बन्ध में कुछ विशेष उपाय नहीं किये जाए |

अगर ज्योतिष के अनुसार आपके लिए ग्रह विशेष अशुभ है तो वास्तु में उस ग्रह के लिए निर्धारित दिशा में आप स्वतः ही इस प्रकार का निर्माण करेंगे कि वहां पर वास्तु दोष निर्मित हो जाएगा | यह वास्तु दोष आपके अवचेतन को प्रभावित करेगा | और इसका अंतिम परिणाम आपके जीवन में घटित होने वाली विभिन्न नकारात्मक घटनाओं के रूप में सामने आएगा |  

कार्य-कारण के इस बेहद महत्वपूर्ण सिद्धांत को आप इस प्रकार भी समझ सकते है कि आपके जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के पीछे भी एक कारण होता है और वह कारण आपके घर में ही स्थित होता है |

जैसा कि आपको बताया गया है कि आपके अवचेतन मन को आप सीधे तौर पर प्रभावित नहीं कर सकते है, ऐसे में वह उन उर्जाओं से प्रभावित होता है जिनके संपर्क में वह निरंतर रहेगा | सामान्य व्यक्ति अपना सर्वाधिक समय अपने घर में व्यतीत करता है तो ऐसे में उसे सर्वाधिक प्रभावित भी वहां उपस्थित उर्जाये ही करेगी |

इसलिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो जाता है कि आपका घर वास्तु सम्मत हो जिससे वहां पर सकारात्मक उर्जाओं का प्रवाह बना रहे | और आपका अवचेतन मन (Subconscious Mind) सकारात्मक घटनाओं को आपके जीवन में आकर्षित करें |

आप अपने जीवन के निर्माता है और वास्तु शास्त्र के नियम जीवन का निर्माण करने के लिए उपलब्ध साधन है | आप वास्तु के इन वैज्ञानिक नियमों की सहायता से अपने लिए एक भव्य और सुंदर जिन्दगी का निर्माण कर सकते है|

Expect Miracles!

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Vastu Consultant Sanjay Kudi

Sanjay Kudi

Sanjay Kudi is one of the leading vastu consultant of India and Co-Founder of SECRET VASTU. His work with domestic and international clients from all walks of life has yielded great results. He has developed a more effective and holistic approach to vastu that draws from the most relevant aspects of traditional vastu, combined with the modern vastu remedies and environmental psychology. Sanjay Kudi, will provide a personalized vastu analysis report to open the door for you to the exceptional potential that the ancient science of Vastu can bring into your life. So, when you’re ready to take your career growth, business and happiness to the next level, simply reach out to us. Feel free to contact us by Phone, WhatsApp or Email.

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Manish Kumar Soni

Best article best knowledge best Vastu Shastri

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Dinesh Kumar

Best vastu consultant

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Dinesh Kumar

Best vastu consultant

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