‘अ-तिथि’ यानि जिसके आने की कोई तिथि ना हो अतिथि कहलाता है | गौरतलब है कि बैठक को ही अधिकांश घरों में अतिथि कक्ष यानि कि गेस्ट रूम बना दिया जाता है, हालाँकि अगर बड़ा भूखंड हो तो इसे अलग से भी बनाया जा सकता है | इस कक्ष को बनाने के लिए घर में कुछ स्थान और कुछ वास्तु नियम निर्धारित है |
अतिथि कक्ष बनाते वक्त इन वास्तु सिद्धांतों का ध्यान रखे –
1. अतिथियों के कमरे के लिए लिए वायव्य कोण सबसे बढ़िया दिशा है |
2. पूर्व या ईशान (उत्तर-पूर्व) में भी अतिथि कक्ष बना सकते है |
3. उत्तर दिशा में भी अतिथि कक्ष बनाया जा सकता है |
4. बेड को कमरे की दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखा जा सकता है |
5. इस कक्ष में बेड को वायव्य दिशा में भी रखा जा सकता है |
6. बेड इस तरह रखे की अतिथि का सिर सोते वक्त दक्षिण, पूर्व या पश्चिम में रहे |
7. सामान रखने के लिए अलमारी की व्यवस्था दक्षिण, नैऋत्य या पश्चिम में करे |
क्या ना करे –
1. नैऋत्य में किसी भी हालत में अतिथि कक्ष ना बनाये | इस दिशा में स्थित कमरा केवल घर के मुखिया के लिए होनी चाहिए |
2. ब्रह्मस्थान में भी अतिथि कक्ष बनाना सही नहीं होता है |
3. तहखाने के ऊपर भी अतिथि कक्ष नहीं बनाये |
4. बेड की व्यवस्था इस प्रकार न करे की सोने वाले का सिर उत्तर की तरफ रहे |
5. बेड के ऊपर किसी तरह की बीम या अलमारी नहीं होनी चाहिए |
6. अतिथि कक्ष लम्बे समय तक बंद ना रखे | इसे भी अन्य कमरों की तरह लगातार उपयोग करे |
अतिथि कक्ष भी एक प्रकार से अन्य शयन कक्षों की तरह ही होता है | अतः इस पर भी लगभग सभी अन्य नियम और सिद्धांत लागू होते है | अतिथि कक्ष को बेहतर बनाकर मेहमानों को अच्छे अनुभव के साथ विदा करे |