इससे पहले की वास्तु पुरुष के बारे में यहाँ पर जानकारी दी जाए, यह समझना आवश्यक होगा की आखिर प्राचीनकाल में वास्तुपुरुष जैसे काल्पनिक प्रतीकों का इस्तेमाल आखिर क्यों किया जाता था ?
दरअसल प्राचीनकाल में रचित साहित्यों में प्रतीकों का इस्तेमाल किया जाना सामान्य था, और प्रतीकों के इस्तेमाल का एक बड़ा ही तार्किक कारण था | प्राचीनकाल में जो ज्ञान उस वक्त के विद्वानों के पास था वो बहुत ही गूढ़ और जटिल था और उस वक्त सामान्यजन ना ही ज्यादा पढ़े लिखे होते थे और ना ही ज्यादा जटिल जानकारी को समझने में परिपक्व | परिणामस्वरूप वो महत्वपूर्ण ज्ञान और विचार सामान्यजन की समझ के बाहर था | ऐसे में एक ऐसा तरीका खोजना आवश्यक था जिससे की सामान्यजन उस ज्ञान से वंचित ना रहे और उसे अपनी भाषा में सहज तौर पर समझ पाए और साथ ही उसे अपने जीवन में लागू कर सके |
इसके लिए प्रतीकों का सहारा लिया गया | प्रतीकों का प्राचीनकाल ही नहीं बल्कि हमारे वर्तमान समय में भी अत्यधिक महत्त्व है | इसका सबसे बड़ा उदाहरण है छोटे बच्चे | छोटे बच्चों के लिए भी जटिल जानकारी को समझना मुश्किल होता है लेकिन वही दूसरी ओर उनमे समझ विकसित करना भी जरुरी होता है | ऐसे में बच्चों को बचपन में अच्छे विचार देने और उनके लिए आवश्यक समझ विकसित करने के लिए ऐसी कहानियों का सहारा लिया जाता है जिनका वास्तविकता में कोई अस्तित्व तो नहीं है, परन्तु वे छोटे बच्चों को समझाने के लिए बहुत आसान और रुचिपूर्ण होती है | कहानियों का उद्देश्य बच्चों को एक सीख देना होता है जो की काल्पनिक कहानियों की भाषा में आसानी और रुचिपूर्ण तरीके से दिया जा सकता है | लेकिन अगर बच्चा बड़ा होने पर कहानी के पीछे छिपे महत्वपूर्ण विचार को भूल जाए और कहानी को ही वास्तविक समझने की भूल कर बैठे तो उन्हें बचपन में सुनाई गई कहानियों का मूलभूत उद्देश्य ही गायब हो जाता है |
कुछ ऐसा ही हुआ है हमारे प्राचीन ग्रन्थों के साथ भी | दरअसल वर्तमान में कई लोगों के भ्रामक प्रचार के कारण प्राचीन ग्रंथो में उपस्थित प्रतीकों को ही लोग सच मानने लग गए और उनके पीछे छिपे बहुमूल्य विचार को भूल गए | इस कारण हमारे समाज की एक बहुत बड़ी क्षति हुई है जिसके अंतर्गत हम वास्तविक और कीमती ज्ञान को भूलकर खोखलें प्रतीकों को ही मात्र पकडे हुए है |
इसलिए यहाँ पर भी ये समझना बेहद जरुरी हो जाता है कि वास्तु पुरुष की कल्पना को वास्तु शास्त्र में एक ऐसे प्रतीक मात्र के तौर पर रचा गया है जिससे वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों को आसान भाषा में समझाया जा सके |
ध्यान देने वाली बात है की हमारी शारीरिक क्षमता और मानसिक क्षमता हमारे जीवन की दशा और दिशा तय करने में निर्णायक भूमिका अदा करती है | वास्तु पुरुष के प्रतीक के जरिये इस बात को ही समझाने का प्रयास किया गया है की हमारे घरों और भवनों का कौनसा भाग उस जगह पर उपस्थित उर्जा के जरिये हमारे शरीर के किस निर्धारित हिस्से, मस्तिष्क, भावनाओं और हमारे जीवन को किस तरह से प्रभावित करता है | इसके लिए प्राचीनकाल में तो गहन शोध हुआ ही है लेकिन प्राचीन समय से लेकर वर्तमान काल तक भवनों की संरचना और निर्माण प्रक्रिया में कई तरह के बदलाव आये है, परिणामतः इन सबका मनुष्यों पर पड़ने वाले असर के सम्बन्ध में शोध कार्य अभी भी निरंतर जारी है |
‘वास्तु पुरुष’ तीन अलग-अलग आकारों से मिलकर बना है – पहला ‘वास्तु’ दूसरा ‘पुरुष’ और तीसरा ‘मंडल’ | ये तीनो प्रतीक क्रमशः ‘विवेक’, ‘शरीर’ व ‘आत्मा’ का प्रतिनिधित्व करते है |
इस वास्तु पुरुष का प्रत्येक अंग दरअसल हमारे शरीर के और जीवन के उन हिस्सों को प्रत्यक्ष और अप्रत्येक्ष रूप से इंगित करता है जो कि घर में उक्त स्थान पर विद्यमान उर्जा से प्रभावित होते है | जब भी पृथ्वी पर किसी भवन का निर्माण होता है तो उस भूभाग पर 45 उर्जा क्षेत्रों का भी निर्माण हो जाता है | जो की इस प्रकार है -
हमने आपको ‘वास्तु क्या है’ नामक लेख में पहले भी बताया था की पृथ्वी पर उर्जाओं का प्रवाह एक ग्रिड के रूप में होता है लेकिन घर या किसी भी प्रकार का निर्माण करते वक्त उस भूभाग पर हो रहा उर्जा का स्वतंत्र प्रवाह बिगड़ जाता है | भवन निर्माण के समय उर्जा के उस विकृत प्रवाह को पुनः प्रकृति के साथ सामंजस्य में लाना आवश्यक होता है | वास्तु पुरुष की परिकल्पना उसी उर्जा प्रवाह को पुनः स्थापित करने के लिए की गई है | [ वास्तु शास्त्र का तार्किक विज्ञान जानने के लिए इस लिंक पर Click करें - @ScienceofVastu ]
हमारा पूरा ब्रह्माण्ड पंच तत्वों से बना है | इन सभी तत्वों का अपने आप में खुले वातावरण में एक स्वतंत्र चरित्र होता है | लेकिन जब भवन निर्माण किया जाता है तो ये तत्त्व उस भवन के भीतर अपने स्वतंत्र चरित्र से हटकर विशेष आन्तरिक प्रक्रियाएं करते हैं जो कि वातावरण में उपस्थित उर्जा के सूक्ष्म प्रवाह को असंतुलित कर देता है | इस असंतुलन को संतुलित करने के लिए प्राचीनकाल में विद्वानों ने अपनी गहन समझ से घर के अन्दर प्रत्येक कार्य के लिए सुनिश्चित स्थान तय किये जो की सर्वोतम नतीजे देते हो | फिर उन सिद्धांतों को घरों में लागू करने हेतु आम लोगों के लिए वास्तु पुरुष की परिकल्पना को प्रस्तुत किया गया |
सामान्य भाषा में वास्तु पुरुष एक प्रकार से किसी भी भवन का एक आदर्श नक्शा बनाने के लिए निर्मित एक मूलभूत ढांचे का प्रतीक है | वास्तु पुरुष के जरिये ये बताया गया है कि किसी भवन में किस स्थान पर किस प्रकार का निर्माण किया जाना उस घर के निवासियों के लिए विकास और सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा | उदाहरण के लिए वास्तु पुरुष की आकृति में ऐसे स्थान जहाँ पर भारी निर्माण कराने से नुकसान होता है उन स्थानों को शरीर के नाजुक स्थानों से दर्शाया गया है |
वास्तु शास्त्र के अंतर्गत किये गए शोध में भवनों के अंदर ऐसे स्थान खोजे गए हैं जो स्थान मस्तिष्क, पेट या अन्य अंगों पर प्रभाव डालते है तो ऐसे स्थानों को भवन में वास्तु पुरुष के अंगों के रूप में दर्शाया गया है | जैसे कि ईशान कोण मस्तिष्क को काफी प्रभावित करता है तो इस स्थान को वास्तु पुरुष में मस्तिष्क के रूप में ही दिखाया गया है और इस स्थान को घरों में खाली रखा जाना चाहिए | इसके अलावा पेट जिसे कि हम घर में ब्रह्म स्थान के रूप में जानते है, वहाँ पर भी किसी प्रकार का गड्ढा या वजन नहीं रखा जाना चाहिए | ऐसे ही वो स्थान जहाँ पर भारी निर्माण किया जा सकता है उन स्थानों को वास्तु पुरुष में जांघो या हाथों के प्रतीक के रूप में दिखाया गया है, क्योंकि वास्तविक जीवन में भी भार को वहन करने के लिए हाथ और जाँघों की ताकत का ही प्रयोग किया जाता है |
इस प्रकार से ये कहा जा सकता है कि ‘वास्तु पुरुष’ एक प्रकार से वास्तु शास्त्र के सिद्धातों का चित्रीय वर्णन है | जिस तरह से हमारा शरीर अपने आप में कुछ नहीं है जब तक की उसमे आत्मा ना हो | आत्मा और कुछ नहीं बल्कि उर्जा का ही एक स्वरुप है जो कि हमारे शरीर में अदृश्य रूप से उपस्थित है | कुछ उसी तरह से हमारे द्वारा बनाये गए भवन भी होते है | उनमे भी एक विशेष प्रकार की उर्जा उपस्थित होती है जो की एक प्रकार से उनकी आत्मा होती है | भवन जहाँ शरीर का प्रतिनिधित्व करता है तो वही उसमे उपस्थित उर्जा उसकी आत्मा का प्रतिनिधित्व करती है | उसी आत्मा रूपी उर्जा को वास्तु शास्त्र में ‘वास्तु पुरुष’ के नाम से जाना जाता है |