ईशान कोण वास्तु कंपास में 22.5° से 67.5° के बीच स्थित होता है| यह उत्तर और पूर्व दिशा के मध्य में स्थित एक महत्वपूर्ण दिशा है | गौरतलब है कि वास्तु शास्त्र का विकास लगभग 6000 - 3000 ई. पू. के बीच हुआ था | तब से लेकर अब तक के अनुभव के आधार पर वास्तुकारों का मानना है कि सभी आठ दिशाओं का अपना महत्व है लेकिन एक सकारात्मक और शुभ दिशा के रूप में ईशान की अहमियत अन्य दिशाओं से अधिक है | यही कारण है कि वास्तु शास्त्र में ईशान (उत्तर-पूर्व दिशा) को पवित्रतम दिशा का दर्जा प्राप्त है |
ईशान कोण में प्रकृति की सात्विक उर्जायें प्रचुर मात्रा में विद्यमान रहती है | ईशान में सूर्योदय के समय मिलने वाली अति लाभदायक UV Rays भी उपलब्ध होती है जो कि सभी प्रकार के बैक्टीरिया को नष्ट करने में अत्यधिक प्रभावी है |
इन्ही पराबैंगनी किरणों के माध्यम से घरों में पाए जाने वाले वाटर प्योरिफायर्स के जरिये पेयजल को शुद्ध किया जाता है | इसीलिए इस दिशा (उत्तरी ईशान कोण) में अंडरग्राउंड वाटर टैंक, कुआँ या बोरवेल के निर्माण की सलाह दी जाती है ताकि इनमे भरा हुआ जल प्राकृतिक रूप से ही सूर्य की पराबैंगनी किरणों द्वारा शुद्ध हो जाए |
गौरतलब है कि भवन में किसी भी दिशा का कटना या विस्तारित (extended) होना वास्तु दोष माना जाता है | लेकिन सभी आठ दिशाओं में ईशान ही एक ऐसी दिशा है जिसका विस्तार (extension) वास्तु में शुभ माना जाता है | किसी भी घर में यह दिशा अगर वास्तु सम्मत रूप से निर्मित हो तो यह उस घर के निवासियों को कई प्रकार से लाभान्वित करती है |
घर की दिशा का पता लगाना -
जिस सड़क से आप घर में प्रवेश करते है अगर वो घर के ईशान दिशा में स्थित हो तो आपका घर ईशानमुखी कहलाता है | [ वास्तु कम्पास से घर की सही दिशा जानने का सरल तरीका यहाँ पढ़े - secretvastu.com/finding-directions ]
हम इस लेख में निम्न चीज़ों का अध्ययन करेंगे –
1- ईशानमुखी घर में मुख्य द्वार का स्थान
2- ईशानमुखी घर के लिए शुभ वास्तु
3- ईशानमुखी घर के लिए अशुभ वास्तु
ईशानमुखी घर में मुख्य द्वार का स्थान –
मुख्य द्वार की अवस्थिति का वास्तु शास्त्र में विशेष महत्व है | इस महत्व को देखते हुए वास्तु शास्त्र में एक भूखंड को 32 बराबर भागों या पदों में विभाजित किया जाता है | इन 32 भागों में से कुल 9 पद बेहद शुभ होते है जिन पर मुख्य द्वार का निर्माण उस घर के निवासियों को कई प्रकार के लाभ पहुंचाता है |
यहाँ एक ध्यान देने वाली बात है कि किसी भी भवन में diagonal दिशाओं (ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य) में मुख्य द्वार नहीं बनाना चाहिए | ईशान मुखी भवन में उत्तर के 3,4 या 5वे पद या फिर पूर्व के तीसरे या चौथे पद में ही मुख्य द्वार बनाना चाहिए | [ आपके घर के मुख्य द्वार का वास्तु जानने के लिए इसे पढ़े - secretvastu.com/main-gate-vastu ]
ईशानमुखी घर के लिए शुभ वास्तु –
1- पश्चिम की तुलना में पूर्व और दक्षिण की तुलना में उत्तर में अधिक खाली स्थान हो तो ऐसे घर के निवासी आर्थिक रूप से सुखी जीवन व्यतीत करते है |
2- पूर्व और उत्तर में स्थित ब्लॉक दक्षिण व पश्चिम की अपेक्षा निम्न हो साथ ही घर का ढलान उत्तर या पूर्व की ओर हो तो व्यक्ति समृद्ध और वैभवपूर्ण जिंदगी जीता है | साथ ही आध्यात्मिक विकास के लिए भी भवन की ऐसी स्थिति उत्तम होती है |
3- वास्तु शास्त्र में extension का यानि की किसी दिशा का विस्तारित होने का एकमात्र अपवाद है ईशान कोण | अगर आपके भूखंड में ईशान कोण का extension या विस्तार उत्तर की ओर हो रखा है तो यह आपको धनवान और भाग्यशाली बनाता है | और अगर ईशान कोण का यह विस्तार पूर्व की ओर हो तो यह आपको आध्यात्मिक रूप से भी लाभान्वित करता है |
4- घर में प्रयुक्त जल और वर्षा के जल का बहाव व निकासी अगर ईशान की ओर से हो तो यह गृहस्वामी के लिए शुभ परिणाम लाता है |
5- पूर्व में ढलान वाले बरामदे पुरुषों के लिए और उत्तर में ढलान वाले बरामदे स्त्रियों के लिए लाभदायक होते है |
6- चूँकि ईशान कोण एक पवित्र दिशा के रूप में मान्य है अतः इस दिशा को सदैव साफ-सुथरा बनाये रखे |
7- उत्तरी ईशान पूर्वी ईशान से नीचा हो तो मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर में और अगर पूर्वी ईशान उत्तरी ईशान से नीचा हो तो मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व में बनवाना उत्तम होगा |
8- उत्तर-पूर्व में जल स्त्रोत (तालाब, नहरें, कुँए) का होना धन-संपति के अर्जन के लिहाज से अति लाभकारी साबित होता है |
ईशानमुखी घर के लिए अशुभ वास्तु –
1- अन्य सभी दिशाएं वास्तु सम्मत हो और ईशान वास्तु दोष से युक्त हो तो ऐसे घर के लोगों के लिए उन्नति करना और समृद्ध जीवन व्यतीत करना लगभग असंभव हो जाता है |
2- जहाँ ईशान का विस्तारित होना शुभ होता है वही ईशान का घटना हर प्रकार से अशुभ होता है और यह एक बड़ा वास्तु दोष होता है |
3- ईशान दिशा में किचन का निर्माण धनहानि करता है और चूँकि स्त्रियाँ अग्नि तत्व से सम्बंधित होती है और ईशान दिशा जल तत्व से सम्बंधित होती है | ऐसे में किचन का निर्माण आग्नेय की जगह ईशान में करने पर यह स्त्रियों के लिए भी हानिकारक सिद्ध होता है |
4- घर का मुख्य निर्माण ईशान कोण में करने पर दरिद्रता और गंभीर रोगों से घर के लोगों को जूझना पड़ता है |
5- ईशान में बना टॉयलेट भी आर्थिक परेशानियों, मस्तिष्क से सम्बंधित बिमारियों, गृह कलह का कारण बन जाता है |
6- ईशान में बनी सीढियां इस दिशा को भारी कर देती है और गृहस्वामी के साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्यों को भी दुष्परिणामों की प्राप्ति होती है |
7- ईशान दिशा में गंदगी, कूड़े-कचरे का ढेर इस दिशा में विद्यमान पवित्र उर्जाओं के सकारात्मक प्रभाव को तो नष्ट करता है साथ ही इसे नकारात्मकता से भर देता है फलतः अशुभ परिणामों की प्राप्ति होती है |
8- ईशान दिशा की चहारदीवारी को कभी भी वृताकृति में नहीं बनवाना चाहिए | ऐसा करने से ईशान दिशा कट जायेगी और परिणामतः वास्तु दोष उत्पन्न हो जाएगा |
9- अगर आप दो या दो से अधिक मंजिलों का निर्माण करना चाहते है तो ग्राउंड फ्लोर के ऊपर की मंजिलें ईशान में बिलकुल भी निर्मित ना करे | इस तरह का निर्माण सदैव दक्षिण व पश्चिम में ही किया जाना चाहिए ताकि दक्षिण व पश्चिम दिशाएं भारी रहे और ईशान इनकी अपेक्षा हल्की रहे |
10- इस दिशा में स्टोर रूम, मास्टर बेडरूम, भारी सामान, अनुपयोगी और व्यर्थ सामान नहीं होना चाहिए |
ईशान दिशा के शुभ-अशुभ नतीजे किसी व्यक्ति या परिवार को चरम सीमा तक प्रभावित करते है | यानि कि वास्तु सम्मत ईशान जहाँ व्यक्ति के लिए प्रगति और सुख-समृद्धि के सभी मार्ग खोल देता है वही वास्तु दोष युक्त ईशान स्वास्थ्य से लेकर आर्थिक समस्याओं का मूल कारण बन जाता है | अतः यह अति आवश्यक हो जाता है कि गृह-निर्माण के समय ईशान दिशा को वास्तु सम्मत रखा जाये |