हमारी सृष्टि में विद्यमान ब्रह्मांडीय उर्जा (Cosmic Energy) जीवन का सर्वोच्च स्त्रोत है | यही उर्जा हमारे जीवन में संतुलन का भी कार्य करती है | आपके घर का मुख्य प्रवेश द्वार इन ब्रह्मांडीय उर्जाओं के लिए एक प्रवेश द्वार की भाँती होता है | यह प्राकृतिक उर्जायें मुख्य प्रवेश द्वार के माध्यम से आपके घर के भीतर प्रवेश करती है |
ब्रह्मांडीय उर्जायें जब किसी माध्यम या स्थान विशेष से गुजरती है तो उसकी प्रकृति भी बदल जाती है | जब हम किसी भवन या घर का निर्माण करते है तो उसका मुख्य द्वार एक ऐसा बेहद संवेदनशील माध्यम या स्थान होता है जहाँ से होकर के ब्रह्मांडीय उर्जाये भवन में प्रवेश करती है और परिणामतः इनकी प्रकृति में परिवर्तन आ जाता है |
एक माध्यम किस प्रकार से किसी चीज की स्वाभाविक प्रकृति या स्वरुप को प्रभावित कर सकता है इसे एक उदाहरण से समझ सकते है | गौरतलब है कि जब सूर्य से निकालने वाली श्वेत प्रकाश किरण एक कांच के प्रिज्म माध्यम से गुजरती है तो यह सात विभिन्न रंगों में विभाजित हो जाती है |
एक कांच का प्रिज्म सूर्य से निकालने वाली किरणों का स्वरुप बदल देता है | इसी प्रकार से जब ब्रह्मांडीय उर्जाये भी जब किसी माध्यम से गुजरती है तो उनकी प्रकृति में बदलाव आ जाता है क्योंकि कही ना कही आपके घर का मुख्य प्रवेश द्वार भी एक ऐसे प्रिज्म के भाँती कार्य करता है जो कि घर के भीतर प्रवेश करने वाली नैसर्गिक उर्जाओं की प्रकृति में परिवर्तन कर देता है |
इस सम्बन्ध में वास्तु शास्त्र में सभी दिशाओं में 32 अलग-अलग पद या भाग निर्धारित कर रखे है | इनमें से कुछ पद सकारात्मक होते है तो कुछ पद नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करने वाले होते है|
अलग-अलग दिशाओं में स्थित इन पदों में मुख्य द्वार के निर्माण पर अलग-अलग उर्जा क्षेत्रों का निर्माण होता है और जब ब्रह्मांडीय उर्जायें इन उर्जा क्षेत्रों से गुजर कर घर में प्रवेश करती है तो उनका शुभ या अशुभ प्रभाव उस घर के निवासियों पर पड़ता है | अगर ये उर्जायें वास्तु सम्मत दिशा में निर्मित मुख्य प्रवेश द्वार से गुजरती है तो ये घर के भीतर भी सकारात्मक माहौल का निर्माण करती है | और ऐसा ना होने पर यह घर में नकारात्मक उर्जा क्षेत्र (Negative Energy Fields) निर्मित करती है|
इससे पहले कि हम इन 32 महत्वपूर्ण भागों और इनका आपके जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में विस्तार से चर्चा करे यह आवश्यक हो जाता है कि हम मुख्य प्रवेश द्वार की सही स्थिति ज्ञात करने के बारे में जानकारी हासिल करे|
मुख्य प्रवेश द्वार की सही स्थिति ज्ञात करने की विधि –
मुख्य प्रवेश द्वार की सही स्थित ज्ञात करने के लिए आपको एक वास्तु कम्पास की सहायता लेनी होगी | कम्पास से आपको भवन की दिशा ज्ञात करनी होगी | इसके बाद आप भवन को इसके केंद्र से 360° डिग्री में वृताकार रूप से विभाजित करेंगे | इस 360° डिग्री को 11.25° डिग्री के कुल 32 भागों में बांटा जाएगा |
फिर आपने कम्पास से भवन की जो दिशा निकाली है उसके अनुरूप 32 भागों में विभिन्न दिशाओं को चिन्हित कर दिया जाएगा | इस प्रक्रिया के बाद आप मुख्य द्वार इन 32 में से कौनसे भाग में स्थित है इसे जान पायेंगे | मुख्य द्वार जिस पद या भाग में स्थित है उसके प्रभाव को आप घर और घर के निवासियों में और उनके जीवन में दिख रहे लक्षणों से मिलान कर सकते है |
[ वास्तु कम्पास से घर की दिशा जानने की विधि यहाँ पढ़े - @FindingHouseFacing ]
द्वार की सही स्थिति ज्ञात करने की विधि जानने के बाद अब हम विभिन्न भागों में स्थित कुल 32 पदों या द्वारों के प्रभाव के बारे में थोडा विस्तार से जानेंगे -
पूर्व दिशा में प्रवेश द्वार स्थित होने के प्रभाव –
पूर्व दिशा में E1 से लेकर E8 तक कुल 8 पद होते है | इनमे से दो पद प्रवेश द्वार के निर्माण के लिए बेहद शुभ होते है जिन्हें E3 (जयंत) और E4 (इंद्र) के नाम से जाना जाता है | अन्य किसी पद पर मुख्य द्वार का निर्माण वास्तु सम्मत नहीं होता है और नकारात्मक परिणाम प्रदान करता है |
E-1
यह पद पूर्व दिशा में स्थित पहला पद है जिसे E1 के अतिरिक्त शिखी के नाम से भी जाना जाता है | यह ईशान दिशा के दो पदों (N1 और E1) में से एक पद है | इस पर मुख्य द्वार का निर्माण अशुभ होता है | यह आर्थिक हानि देता है, अग्नि भय उत्पन्न करता है और दुर्घटनाओं का कारण बनता है |
E-2
यह द्वार फिजूल खर्चे का कारक होता है | हालांकि यह द्वार वास्तु शास्त्र के अनुसार कन्या जन्म का कारक भी होता है जो कि एक बेहद शुभ घटना है लेकिन चूँकि यह धन का अपव्यय करवाता है इसलिए इसे नकारात्मक की श्रेणी में रखा जाता है |
E-3
इस द्वार को वास्तु में जयंत के नाम से जाना जाता है | इस स्थान पर मुख्य द्वार का निर्माण आपको प्रचुर आर्थिक सम्पन्नता देगा, दीवान में सफलता प्रदान करेगा | अतः इस द्वार को बहुत शुभ माना जाता है |
E-4
इसे वास्तु में इंद्र के नाम से जाना जाता है | यह भी E3 के समान आर्थिक सम्पन्नता में वृद्धि का कारक होता है और घर के निवासियों को जीवन में सफलता प्रदान करता है |
E-5
सूर्य के नाम से जाना जाने वाला यह द्वार अप्रिय नतीजे देता है | अनिर्णय की स्थिति, गलत निर्णय लेना और शोर्ट टेम्पर होना यानि कि छोटी-छोटी बातों पर भी क्रोध करना इस द्वार का परिणाम होता है |
E-6
सत्य के नाम से प्रचलित यह द्वार अपने नाम के विपरीत प्रभाव देता है | इसमें रहने वाले निवासी विश्वास करने लायक नहीं होते है | ये अपने वादों पर कायम नहीं रहते है | इसके अतिरिक्त यह बेटियों के लिए भी हानिकारक होता है |
E-7
भ्रश नामक यह द्वार घर वालों को असंवेदनशील बनाता है और दूसरों के प्रति कठोर एवं निर्मम व्यव्हार की प्रवृति को बढाता है |
E-8
यह द्वार चोरी का भय, आर्थिक हानि, दुर्घटनाये देता है |
दक्षिण दिशा में स्थित 8 भागों पर प्रवेश द्वार स्थित होने के प्रभाव –
दक्षिण दिशा में S1 से लेकर S8 तक कुल 8 पद होते है | दक्षिण मुखी घरों के बारे में अक्सर यह भ्रम देखा जाता है कि इस दिशा में निर्मित भवन सदैव अशुभ परिणाम देते है जबकि ऐसा नहीं है | बल्कि इस दिशा में अन्य दिशाओं की भाँती दो ऐसे पद है जिन पर मुख्य द्वार का निर्माण आपको अपार सफलता और समृद्धि प्रदान करेगा |
इन पदों को S3 (वितथ) और S4 (गृहक्षत) के नाम से जाना जाता है | दक्षिण दिशा में अन्य किसी पद पर मुख्य द्वार का निर्माण वास्तु सम्मत नहीं होता है और नकारात्मक परिणाम प्रदान करता है | [ दक्षिण मुखी भवनों के बारे में विस्तार से वास्तु जानने के लिए यह आर्टिकल पढ़े - @SouthFacingHouse ]
S-1
वास्तु शास्त्र में इस द्वार को अनिल के नाम से भी जाना जाता है | यह द्वार संतान (लडकों) के लिए हानिकारक होता है | यह द्वार बच्चे के साथ माता-पिता के सम्बन्ध ख़राब करता है | यह रोग प्रदान करने वाला भी होता है|
S-2
यह द्वार रिश्तेदारों से परेशानी पैदा करता है | हालाँकि यह बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में काम करने वाले लोगो के लिए फायदेमंद होता है | परन्तु व्यापारियों को इस स्थान पर मुख्य द्वार नहीं बनाना चाहिए|
S-3
समृद्धि और वैभव प्रदान करने वाला होता है | इस घर के निवासी अपना काम निकलवाने में दक्ष होते है | हालाँकि इसके लिए वे कभी-कभार अनुचित तरीके अपनाने में भी संकोच नहीं करते है | तो यह द्वार सम्पन्नता तो अवश्य प्रदान करता है लेकिन कही न कही यह घर के निवासियों को अविश्वसनीय भी बनाता है|
S-4
यह दक्षिण दिशा का सबसे शुभ पद होता है जिसपर मुख्य द्वार बनाया जा सकता है | यह धन और वैभव में वृद्धि का कारक होता है | ऐसे घरों में लड़कों का जन्म अधिक होता है | साथ ही यह निवासियों की अच्छी साख बनाता है और उन्हें प्रसिद्धि दिलाने में भी बेहद सहायक होता है|
S-5
यह बहुत अशुभ नतीजे प्रदान करता है | यह ना सिर्फ कर्ज में डुबोता है बल्कि आर्थिक रूप से हानि भी देता है | अतः इस स्थान पर प्रवेश द्वार नहीं बनाये|
S-6
यह पद गन्धर्व कहलाता है | इस स्थान पर मुख्य द्वार अपमान का कारण बनता है | यहाँ उपस्थित उर्जा क्षेत्र प्रवेश द्वार के माध्यम से इतनी नकारात्मकता प्रदान करता है कि यहाँ के निवासियों को निंरतर आर्थिक हानि झेलनी पड़ती है और वे भयंकर दरिद्रता के शिकार हो जाते है|
S-7
निवासियों द्वारा की गई कड़ी मेहनत भी बेनतीजा रहती है | परिणामतः श्रम करने की इच्छा भी समाप्त हो जाती है और जीवन से घोर निराशा होने लगती है|
S-8
जैसा कि आपने देखा कि प्रवेश द्वार के लिए जैसे जैसे हम S4 (गृहक्षत) के पद से S8 पद की ओर बढ़ते जाते है नकारात्मक नतीजों में भी वृद्धि होती जाती है | इसी क्रम में दक्षिण दिशा का अंतिम पद S8 सर्वाधिक अशुभ और गंभीर नतीजे प्रदान करने वाला होता है | यहाँ के निवासियों का सम्पूर्ण खानदान और समाज से सम्बन्ध पृथक हो जाता है | धन की अपार हानि होती है और संतानों सहित परिवार के अन्य सदस्यों के लिए दुःख का कारण बनता है | इसलिए किसी भी हालत में इस स्थान पर मुख्य प्रवेश द्वार नहीं बनाया जाना चाहिए, यह वास्तु शास्त्र में सर्वथा वर्जित है|
पश्चिम दिशा में स्थित 8 भागों पर प्रवेश द्वार स्थित होने के प्रभाव –
पश्चिम दिशा में W1 से लेकर W8 तक कुल 8 पद होते है | इनमे से W3 (सुग्रीव) व W4 (पुष्पदंत) नामक दो पद शुभ होते है | इसके अलावा W5 (वरुण) नामक पद को भी कुछ वास्तु विशेषज्ञ शुभ फल प्रदान करने वाला मानते है | उपरोक्त तीनों पदों में W4 (पुष्पदंत) को सर्वाधिक लाभ प्रदान करने वाला माना गया है |
वास्तु शास्त्र में पश्चिम दिशा में अन्य किसी पद पर निर्माण की सलाह नहीं दी जाती है | [ पश्चिम मुखी घर का वास्तु जानने के लिए इस आर्टिकल लिंक पर Click करे - @WestFacingHouse ]
W-1
पितृ के नाम से जाना गया यह द्वार गरीबी देता है और आयु पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है |
W-2
धन के अपव्यय का कारक | असुरक्षा की भावना पैदा करता है और परिणामतः पारिवारिक सम्बन्धो में तनाव और नौकरी में अस्थिरता का कारण बनता है |
W-3
यह पद मिश्रित लाभ प्रदान करता है | सुग्रीव नामक यह पद पश्चिम दिशा में मुख्य द्वार के निर्माण के लिए शुभ होता है | यह आश्चर्यजनक धन लाभ और सम्पन्नता प्रदान करता है | हालाँकि यह शुभ फलों के साथ ही कुछ नकारात्मक नतीजे भी प्रदान करता है |
W-4
सुग्रीव के अतिरिक्त W4 का पद भी आर्थिक लाभ में वृद्धि करता है | संतानों के लिए यह विशेषरूप से लाभकारी होता है | एक संतुलित जीवन जीने के लिए यहाँ पर प्रवेश द्वार निर्मित किया जा सकता है |
W-5
वरुण नामक यह पद व्यक्ति को काम में परफेक्शनिस्ट तो बनाता है लेकिन साथ ही में यह व्यक्ति में अति महत्वाकांक्षा भी पैदा कर देता है | ऐसे में यह तनावग्रस्त संबंधो का कारण बनता है | हालाँकि यह व्यक्ति को संपन्न और समृद्ध भी बनाता है|
W-6
पश्चिम दिशा में स्थित यह पद नकारात्मा के नाम से प्रचलित है | यहाँ स्थित मुख्य द्वार डिप्रेशन प्रदान करता है | इसके अतिरिक्त यह सरकारी कर्मचारियों के लिए विशेष रूप से हानिकारक है क्योंकि यह राजकीय भय या सरकारी भय उत्पन्न करता है और हानिकारक सिद्ध होता है |
W-7
आर्थिक हानि, पारिवारिक तनाव देता है | और परिणामतः यह द्वार निराशा से ग्रस्त व्यक्ति को कई बार नशे का आदी भी बना देता है |
W-8
यह शारीरिक रोग देता है | स्वार्थ के लिए अनुचित तरीके अपनाना इस द्वार का एक नकारात्मक परिणाम है | यह निवासियों (विशेषकर पुरुषों) को घर से बाहर रखता है और विदेशी दौरों के अवसर भी प्रदान करता है |
उत्तर दिशा में स्थित 8 भागों पर प्रवेश द्वार स्थित होने के प्रभाव –
उत्तर दिशा में मुख्य प्रवेश द्वार के निर्माण के लिए अन्य किसी भी दिशा की अपेक्षा सर्वाधिक शुभ और सकारात्मक पद स्थित होते है |
उत्तर दिशा में N1 से लेकर N8 तक कुल 8 पद होते है | इनमे से तीन पद प्रवेश द्वार के निर्माण के लिए बेहद शुभ और वैभव सम्पन्नता प्रदान करने वाले होते है | इन्हें N3 (मुख्य) और N4 (भल्लाट) N5 (सोम) के नाम से जाना जाता है | उत्तर दिशा के अन्य किसी पद पर मुख्य द्वार का निर्माण वास्तु सम्मत नहीं होता है |
N-1
उत्तर में स्थित यह प्रथम द्वार वास्तु शास्त्र में ‘रोग’ के नाम से जाना जाता है | शत्रुओं से परेशानी का कारण बनता है और कभी-कभी यह परेशानी गंभीर रूप ले लेती है और हानिकारक परिणाम प्रदान करती है | यह निवासियों (विशेषकर स्त्रियों) को घर से बाहर रखता है और विदेशी दौरों के अवसर भी प्रदान करता है |
N-2
शत्रुओ की संख्या में वृद्धि करता है और उनसे निरंतर भय बना रहता है | निवासियों में इर्ष्या की भावना रहती है और वे दूसरों के जीवन में अनुचित भाव से नजर रखते है |
N-3
असीम धन की प्राप्ति होती है और इसमें निरंतर वृद्धि होती रहती है | इसके अतिरिक वास्तु शास्त्र के अनुसार यह पद पुत्र लाभ का भी कारक है |
N-4
उत्तर दिशा का यह पद भल्लाट कहलाता है | यह भी N3 के समान प्रचुर धन वर्षा करता है और साथ ही यह उतराधिकार में सम्पति भी प्राप्त करवाता है | धन कमाने के लिए यह निरंतर नए-नए अवसर प्रदान करता है |
N-5
इस पद को सोम के नाम से भी जाना जाता है | यह द्वार भी आर्थिक समृद्धि और पुत्र लाभ प्रदान करता है | यह व्यक्ति को स्वाभाव से धार्मिक प्रवृति का बना देता है |
N-6
यह द्वार संतान के साथ झगडे और विवाद पैदा करता है | लोग यहाँ रहने वाले निवासियों के व्यव्हार के चलते उनसे दुरी बना कर चलते है |
N-7
अदिति नामक यह द्वार स्त्रियों के लिए विशेष रूप से हानिकारक सिद्ध होता है | स्त्रियों का स्वाभाव ख़राब करता है | इसके अतिरिक्त यह द्वार इंटर कास्ट मैरिज का कारण भी बनता है|
N-8
उत्तर दिशा का यह अंतिम द्वार दिति कहलाता है | यह बचत में वृद्धि करता है |
इस प्रकार से आपने देखा कि प्रत्येक दिशा में शुभ द्वार भी होते है और अशुभ भी | आप स्वयं इन द्वारों के प्रभावों की प्रमाणिकता जांच सकते है | बिना कम्पास के भी आप किसी भवन में रहने वाले लोगो के जीवन में दिख रहे लक्षणों का मिलान उनके मुख्य द्वार की अवस्थिति का अंदाजा लगा के कर सकते है | [ भवन निर्माण के वक्त घर को वास्तु सम्मत बनाने के लिए इस आर्टिकल को पढ़े - @HouseVastu ]
ganesh mishra
E 1 कें क्षेत्र में मुख्य द्वार कें उपाय बताए! आपके द्वारा बताए गये E 1द्वार कें लक्षण हमारे जीवन में शत प्रतिशत प्रभावित कर रहे है
Shashidhar V Emmi
Great experience and life time experiences can be gain. It’s so scientific that anyone can get it’s benefits. Thankfully we owe your dedication.🙏
Adarsh Jain
I have to learn vastu