वायव्य दिशा वास्तु कंपास में 292.5° से 337.5° के बीच स्थित होती है | वायव्य कोण पश्चिम व उत्तर दिशा के बीच में स्थित एक महत्वपूर्ण दिशा है | चन्द्रमा वायव्य दिशा का स्वामी ग्रह है| जैसे ही सूर्य पश्चिम में अस्त होता है रात्रिकाल का स्वामी चन्द्रमा वायव्य दिशा में उदित होने लगता है | इसके दिक्पाल हवाओं के देवता मरुत देव है | चूँकि वायव्य गर्म और ठन्डे क्षेत्रों का मिलन बिंदु है अतः यह क्षेत्र वायु के प्रवेश हेतु एक आदर्श स्थान है |
वायव्यमुखी भवन में वायव्य दिशा के लिए सर्वाधिक उपयुक्त गतिविधियाँ –
वायु का प्राकृतिक स्वभाव होता है - बहना | चूँकि यह एक स्थान पर ज्यादा देर नहीं रूकती अतः वायु की दिशा वायव्य में रहने वाले व्यक्ति में भी स्थायित्व या एक जगह ज्यादा देर रुकने की प्रवृति नहीं रह पाती है | अतः यह घर के मुखिया के शयन कक्ष के लिहाज से सर्वाधिक उपयुक्त जगह नहीं है, लेकिन अतिथि कक्ष के लिए यह उत्तम स्थान है | वायु के इसी गुण के चलते यह उन व्यक्तियों के लिए भी विशेष उपयोगी है जो अपने पैतृक स्थान से किसी कारणवश दूर रहना चाहते है या फिर की देश-विदेश में यात्राये करने के इच्छुक हो तो भी यह दिशा उपयुक्त है |
इसके अलावा यह दिशा खाद्यानों के भण्डारण के लिए भी उत्तम स्थान है | वायु की उपलब्धता में खाद्य वस्तुएं अधिक समय तक शुद्ध रहती है अतः वायव्य में सर्वदा उपलब्ध वायु इस दिशा में रखे हुए खाद्यानों को शुद्ध रखने में सहायक होती है |
इसके अतिरिक्त वायव्य कोण विवाह योग्य आयु की अविवाहित कन्याओं के बेडरूम के लिए, पालतू पशुओं व मनोरंजन कक्ष के रूप में भी यह दिशा बेहद उपयुक्त है | वायु भी अग्नि के समान रजस स्वाभाव की होती है और अग्नि को जलाने में सहायता करती है अतः वायव्य दिशा में किचन का भी निर्माण किया जा सकता है |
घर की दिशा का पता लगाना-
जिस सड़क से आप घर में प्रवेश करते है अगर वो घर के वायव्य दिशा में स्थित हो तो आपका घर वायव्यमुखी कहलाता है | [ वास्तु कंपास से घर की सही दिशा जानने के लिए इस आर्टिकल लिंक पर Click करे - secretvastu.com/finding-directions ]
हम इस लेख में निम्न चीज़ों का अध्ययन करेंगे –
1- वायव्यमुखी घर में मुख्य द्वार का स्थान
2- वायव्यमुखी घर के लिए शुभ वास्तु
3- वायव्यमुखी घर के लिए अशुभ वास्तु
वायव्यमुखी घर में मुख्य द्वार का स्थान –
मुख्य द्वार की अवस्थिति का वास्तु शास्त्र में विशेष महत्व है | इस महत्व को देखते हुए वास्तु शास्त्र में एक भूखंड को 32 बराबर भागों या पदों में विभाजित किया जाता है | इन 32 भागों में से कुल 9 पद बेहद शुभ होते है जिन पर मुख्य द्वार का निर्माण उस घर के निवासियों को कई प्रकार के लाभ पहुंचाता है |
यहाँ एक ध्यान देने वाली बात है कि किसी भी भवन में diagonal दिशाओं (ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य) में मुख्य द्वार नहीं बनाना चाहिए | वायव्यमुखी भवन में पश्चिम के चौथे या पांचवे पद में या फिर अगर उत्तर में संभव हो तो इसके 3, 4 या पांचवे पद में मुख्य द्वार बनाया जा सकता है | [ मुख्य द्वार का वास्तु जानने के लिए इसे पढ़े - secretvastu.com/main-gate-vastu ]
वायव्यमुखी घर के लिए शुभ वास्तु –
1- घर का ढलान और घर में प्रयुक्त जल का बहाव उत्तर-पूर्व की ओर रखना सर्वोत्तम है | इस प्रकार के ढलान से घर के लोगो को स्वास्थ्य लाभ होता है |
2- उत्तर और पूर्व दिशा दक्षिण और पश्चिम की तुलना में कम ऊँची और अधिक खाली हो तो यह शुभता का सूचक है | इस प्रकार का वास्तु आर्थिक लाभ कराता है |
3- गेस्ट रूम के निर्माण के लिए वायव्य दिशा सभी दिशाओं में श्रेष्ठ है |
4- किचन के निर्माण के लिए घर में आग्नेय कोण के बाद दूसरा सर्वोत्तम विकल्प वायव्य दिशा है | वायव्य में भंडारगृह भी निर्मित किया जा सकता है |
5- अंडरग्राउंड वाटरटैंक का निर्माण ईशान में करना घर के लोगो के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी होता है |
6- वायव्यमुखी घर में ब्रह्मस्थान को खाली रखना, नैऋत्य में मास्टर बेडरूम का निर्माण, ईशान में पूजा स्थल, पश्चिम दिशा में बच्चो का बेडरूम बनाना इत्यादि कुछ उदाहरण है जो कि घर के सदस्यों के लिए सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करते है |
7- उत्तरी वायव्य में अंदर और बाहर दोनों ही तरफ सीढियां निर्मित की जा सकती है |
8- घर का निर्माण पश्चिम और दक्षिण की ओर करे तथा उत्तर व पूर्व दिशा को जितना संभव हो खुला छोड़ दे | यह आपके लिए अतिशुभ परिणाम लाएगा |
वायव्यमुखी घर के लिए अशुभ वास्तु–
1- भूखंड में किसी भी दिशा का आगे निकला होना अशुभ होता है | उत्तरी वायव्य अगर आगे निकला हो तो घर में ना सिर्फ चोरी और अग्निभय बना रहता है बल्कि ऐसा वास्तु जीवन में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न कर देता है|
2- घर में आग्नेय और वायव्य दोनों ही कोणों का वास्तु सही नहीं हो तो ऐसे में घर में आग लगने की सम्भावना अधिक हो जाती है | विशेषकर कि जब आग्नेय और वायव्य दिशाओं का अनुपात नैऋत्य और ईशान से अधिक हो जाता है तो ऐसे घरों में आग लगने कि आशंका बढ़ जाती है|
3- किसी भी घर में सबसे अधिक ऊँचा नैऋत्य होता है फिर क्रमशः आग्नेय, वायव्य और ईशान की ओर ऊंचाई घटती जाती है | लेकिन अगर वायव्य ईशान से भी नीचा हो तो ऐसे में इस प्रकार का वास्तु दोष कानूनी वाद-विवादों में उलझाता है|
4- गौरतलब है कि चन्द्रमा वायव्य का स्वामी ग्रह है जिसका सम्बन्ध है व्यक्ति के मन से होता है | अतः वायव्य दिशा का वास्तु व्यक्ति के मन को सकारात्मक और नकारात्मक तौर पर प्रभावित करता है | जैसे कि वायव्य का कटा होना व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है | व्यक्ति अनर्गल और आधारहीन बातों में उलझा रहता है साथ ही सिरदर्द और चक्कर आने जैसी समस्या भी उत्पन्न हो सकती है|
5- वायव्य में कुआँ या गड्ढा होना वास्तु सम्मत नहीं होता है|
6- उत्तर-वायव्य का अग्रेत होना, इसका नैऋत्य से भी ऊँचा होना या वायव्य का ढंका होना इत्यादि कुछ परिस्थितियां है जो की ऐसे घरों में देखी गई है जिन घरों की नीलाम होने की नौबत आ जाती है|
7- उत्तरी वायव्य में मार्ग प्रहार भी एक वास्तु दोष है जिसका विशेष असर स्त्रियों के स्वास्थ्य पर देखने को मिलता है | साथ ही ऐसा मार्ग वेध घर के सदस्यों को दुर्व्यसनों का शिकार भी बना देता है|
वायव्यमुखी भवन अगर वास्तु सम्मत नहीं बने हो तो इस प्रकार के भवन के स्वामी कानूनी वाद-विवादों में निरंतर उलझे रहते है | साथ ही दोषपूर्ण वायव्यमुखी घर व्यक्ति को अत्यधिक दार्शनिक भी बना देता है और कई बार व्यक्ति के सांसारिक जीवन से भी विमुख की स्थिति उत्पन्न हो जाती है | अतः यह आवश्यक हो जाता है कि वायव्यमुखी भवन पुर्णतः वास्तु सम्मत बने और इस प्रकार के घर के निवासियों का जीवन सुख-समृद्धि के साथ व्यतीत हो|
Chitra shah
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