जियो का अर्थ होता है – पृथ्वी और पैथिक के दो अर्थ होते है – पहला रोग और दूसरा अर्थ रोग का निवारण | जियोपैथिक स्ट्रेस की प्रचलित परिभाषा के अनुसार इसका मतलब होता है ऐसी पीड़ा या परेशानी जो की पृथ्वी के प्रभाव का कारण होती है |
गौरतलब है कि जर्मन शोधकर्ता Baron Gustav Frei Herr Von Pohl ने जियोपैथिक ज़ोन शब्द का इजात किया था | उन्होंने अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा जियोपैथिक स्ट्रेस जोन पर शोध करने में बिताया और इस नतीजे पर पहुंचे की लगभग प्रत्येक बीमारी का कुछ न कुछ सम्बन्ध जियोपैथिक स्ट्रेस से पाया जा सकता है |
इस शब्द का उपयोग उस अवस्था के लिए किया जाता है जब प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से पृथ्वी से निकलने वाली उर्जा मनुष्य के ऊपर नकारात्मक प्रभाव डालती है | यानि की पृथ्वी से उत्पन्न नुकसानदायक तरंगो के मनुष्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव को जियोपैथिक स्ट्रेस कहा जाता है | यह भी एक तरह का वास्तु दोष है क्योंकि इसमें भी घर के अन्दर अशुभ उर्जा का प्रवाह होता है |
जानिये जियोपैथिक स्ट्रेस जोन आखिर होता क्या है ?
वास्तु शास्त्र के अनुसार पृथ्वी पर उर्जा का प्रवाह उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम की ओर विशाल ग्रिड लाइन्स के रूप में होता है | इसके परिणामस्वरूप एक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण होता है | इन ग्रिड लाइन्स को हर्टमैन ग्रिड और करी ग्रिड लाइन्स के रूप में जाना जाता है |
डॉ. मैनफेड ने अपने अध्ययन में पाया कि प्राकृतिक विद्युत् रेखाओं का एक जाल पृथ्वी को घेरे हुए है | ये रेखाएं ईशान (North-East) से नैऋत्य (South-West) की ओर व आग्नेय (South-East) से वायव्य (North-West) की ओर प्रवाहमान रहती है |
उर्जा रेखाओं के इस प्रवाह को करी ग्रिड (Currie Grid) के नाम से जाना जाता है | इन रेखाओं के मिलन बिन्दुओं पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव दोगुना हो जाता है |
ठीक इसी प्रकार जर्मनी के डॉ. हार्टमैन ने उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम की ओर चलने वाले उर्जा रेखाओं के प्रवाह को खोजा | जिन्हें हार्टमैन ग्रिड (Hartmann Grid) के नाम से जाना जाता है | करी रेखाओं के समान ही हार्टमैन रेखाओं के मिलन बिंदु भी बेहद शक्तिशाली होते है |
हार्टमैन रेखाओं को करी रेखाओं के ऊपर स्थापित करने पर और भी अधिक संवेदनशील व शक्तिशाली ग्रिड का निर्माण होता है |
व्यक्ति के स्वस्थ रहने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह इन ग्रिड्स के अंदर ही निवास करें लेकिन इन रेखाओं के मिलन बिन्दुओं पर बिलकुल नहीं सोये क्योंकि इन रेखाओं के मिलन बिन्दुओं पर जियोपैथिक स्ट्रेस जोन निर्मित हो जाता है जोकि स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद घातक सिद्ध होता है |
जियोपैथिक स्ट्रेस जोन कई प्रकार की गंभीर व दीर्घकालीन बिमारियों का तो कारण बनता ही है साथ ही यह स्थान विशेष में नकारात्मक उर्जा भी उत्पन्न करता है जिससे की व्यक्ति में सही और सकारात्मक निर्णय लेने की क्षमता पर भी असर पड़ता है | फलतः स्वास्थ्य के अतिरिक्त भी अन्य कई समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है |
दुसरे शब्दों में हमारी धरती में एक विधुत चुम्बकीय क्षेत्र विद्यमान है | जब पृथ्वी से निकलने वाली तरंगे ऊपर सतह की और बढती है तो वे underground running water, mineral field or crystals deposits और fault lines से निर्मित विधुत चुम्बकीय क्षेत्र से प्रभावित होकर विकृत हो जाती है और जिन स्थानों से होकर ये गुजरती है वहाँ पर जियोपैथिक स्ट्रेस जोन निर्मित हो जाता है |
पृथ्वी के अन्दर उत्पन्न तरंगों की फ्रीक्वेंसी या आवृति 7.8 हर्ट्ज (Hz) होती है | लेकिन जिन स्थानों पर जियोपैथिक स्ट्रेस जोन होता है वहाँ की आवृति कई गुना ज्यादा होती है |
यानि की जब 7.8Hz आवृति वाली तरंगे 80 से 160 मीटर नीचे मौजूद किसी भूमिगत पानी या किसी अवरोध से होकर निकलती है तो नयी तरंगे उत्पन्न होती है और उनकी आवृति 250Hz से भी ज्यादा हो सकती है | जो की मनुष्य के लिए बहुत नुकसानदायक है | ये तरंगे या उर्जायें किसी भी दीवार या अवरोध को पार कर सकती है |
हालाँकि एक दिलचस्प तथ्य ये है कि जियोपैथिक स्ट्रेस की फ्रीक्वेंसी हमारे मस्तिष्क की फ्रीक्वेंसी से तो कई ज्यादा होती है जो की हमारे लिए नुकसानदायक है, लेकिन ये ही फ्रीक्वेंसी दुसरे कई जीवो के पनपने और उनके अस्तित्व लिए आवश्यक होती है, जैसे की bacteria, parasites, viruses | इन्हें पनपने के लिए 150 Hz से 180 Hz की फ्रीक्वेंसी की आवश्यकता होती है|
जियोपैथिक स्ट्रेस जोन से उत्पन्न समस्याएं -
जियोपैथिक स्ट्रेस के अंतर्गत निकलने वाली उर्जायें एक सामान्य मनुष्य के उर्जा के स्तर से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली होती है | इसीलिए अगर आप ऐसे स्ट्रेस जोन में सोते है या ज्यादा वक्त बिताते है जो की किसी Magnetic Grid Line या underground water system से उत्पन्न होने वाली तरंगो से प्रभावित है तो इसका आप पर बुरा असर पड़ सकता है |
जियोपैथिक स्ट्रेस कई तरह की बीमारियों का कारण बनता है | इससे होने वाली बिमारियों में कैंसर सबसे घातक है, यहाँ तक की टयुमर्स तो तकरीबन हमेशा बिलकुल उस स्थान पर विकसित होते है जहाँ पर दो या अधिक जियोपैथिक स्ट्रेस लाइन्स किसी आदमी के शरीर से होकर गुजरती है जहाँ पर वो सोता है |
ये जियोपैथिक स्ट्रेस के सम्बन्ध में हुए शोध ये बताते है की ऐसे 85% मरीज जो कैंसर से मर जाते है ऐसा उनके जियोपैथिक स्ट्रेस जोन में ज्यादा संपर्क में रहने के कारण हुआ | दुनिया के प्रसिद्ध कैंसर विशेषज्ञ और जर्मन डॉक्टर Hans Nieper ने बताया है की उनके 92% कैंसर के मरीज जियोपैथिक स्ट्रेस से प्रभावित थे |
इसी क्षेत्र में शोध करने वाले एक एक प्रमुख शख्सियत Von Pohl जिन्होंने जियोपैथिक ज़ोन शब्द का इजाद किया, उन्होंने Central Committee for Cancer Research, Berlin, Germany, के सामने ये साबित किया की किसी व्यक्ति को कैंसर की सम्भावनाये बहुत कम हो जाती है अगर उसने अपना समय जियोपैथिक स्ट्रेस जोन में ना बिताया हो, विशेष तौर पर सोते वक्त क्योंकि सामान्यतया जहाँ हम सोते है वहाँ GS जोन का असर ज्यादा होता है क्यूंकि उस वक्त हम स्थिर और ज्यादा ग्राह्य होते है |
कैंसर पर जियोपैथिक स्ट्रेस जोन के असर को लेकर हुआ शोध और भी पुख्ता हो जाता है जब हम इस मसले पर अन्य शोधकर्ताओं के रिसर्च को देखते है | जैसे की डॉक्टर Ernst Hartmann, MD ने भी जियोपैथिक स्ट्रेस को कैंसर के सबसे मुख्य कारणों में से एक माना है | उन्होंने कहा है की हम सभी कैंसर के लिए जिम्मेदार सेल्स पैदा करते है, लेकिन वो हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानि की इम्यून सिस्टम के कारण साथ के साथ नष्ट भी कर दिए जाते है |
लेकिन जब आप GS जोन के प्रभाव में आते है तो वो सीधे तौर पर आपको कैंसर तो नहीं देता है लेकिन कैंसर सेल्स को नष्ट करने के लिए जरुरी इम्यून सिस्टम को ही वो कमजोर कर देता है जिससे आपके कैंसर सेल्स नष्ट होने बंद हो जाते है और फिर वो ही कैंसर का कारण बनता है |
सिर्फ कैंसर ही नहीं बल्कि गंभीर दीर्घकालीन बीमारियों और मनोरोगों की स्थिति में भी जियोपैथिक स्ट्रेस एक बड़े कारण के रूप में सामने आया है | इसके कारण नींद ना आने की समस्या, सिरदर्द, बैचेनी, और बच्चों का चिडचिडा व्यव्हार जैसी समस्याएँ भी आती है |
विशेष हार्मोनल सिस्टम के कारण महिलाएं जियोपैथिक स्ट्रेस के प्रति ज्यादा खतरे में होती है | इसके अलावा छोटे बच्चे और गर्भ में पल रहे बच्चों को इसका खतरा और भी ज्यादा होता है | ऐसा पाया गया है की GS जोन में सोने वाली महिलाओं में 50% महिलाएं गर्भधारण करने में असफल रही | अगर महिला गर्भवती है और इस जोन में रखी जाती है तो ये बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है और यहाँ तक की गर्भपात की आशंका भी बढ़ जाती है |
जियोपैथिक स्ट्रेस के दूसरे बुरे असर होते है जो की अप्रत्यक्ष तौर पर इससे प्रभावित होते है जैसे की – कार्य कुशलता में कमी, किसी संपत्ति को बेचने में आने वाली परेशानी, प्रजनन क्षमता में कमी, असमय मृत्यु, घरेलु झगडे, कोमा में जाना इत्यादि |
हालाँकि जैसा कि आपको बताया कि इनमे से कोई भी घटना प्रत्यक्ष तौर पर जियोपैथिक स्ट्रेस से नहीं होती है लेकिन जियोपैथिक स्ट्रेस के कारण नकारात्मक उर्जा जिस तरह से हमारे मस्तिष्क को प्रभावित करती है वो इन सब घटनाओ का कारण बनता है |
जियोपैथिक स्ट्रेस जोन के लक्षण –
इसमें कोई शक नहीं है की जानवर और पौधे प्रकृति में होने वाली घटनाओ के प्रति हमसे कई ज्यादा संवेदनशील होते है |अधिकांश जानवर नकारात्मक स्थानों और प्राकृतिक घटनाओं के प्रति पहले से ही सचेत हो जाते है | ऐसी ही एक प्राकृतिक और कुछ हद तक मानवीय कारणों से प्रभावित परिस्थिति है जियोपैथिक स्ट्रेस जोन की जिसके प्रति ये काफी संवेदनशील होते है |
सामान्यतया सभी प्राणी इस प्रकार के क्षेत्र से नकारात्मक रूप से प्रभावित होते है | हालाँकि कुछ ऐसे भी जीव-जंतु और पौधे है जो की जियोपैथिक स्ट्रेस वाले जोन की तरफ आकर्षित होते है और इनमे पनपते भी है | ऐसे जानवर जो की जियोपैथिक स्ट्रेस जोन की तरफ आकर्षित होते है उनमे सम्मिलित है – cats, bees, wasps and ants | अगर पौधों की बात करे तो mold, lichen, moss and ferns जैसे पौधे और bacteria, viruses भी ऐसे स्ट्रेस जोन की तरफ आकर्षित होते है |
अब अगर बात करें उनकी जो की इस तरह के जियोपैथिक स्ट्रेस जोन से नकारात्मक तरीके से प्रभावित होते है तो उनमे मनुष्यों के अलावा sheep, cattle, horse, hens and dogs शामिल है | जहाँ मनुष्य इस तरह के क्षेत्र के प्रति असंवेदनशील होने के चलते इन्हें महसूस नहीं कर सकते वही अधिकांश जानवर इस तरह के क्षेत्र को ना सिर्फ महसूस कर सकते है बल्कि वे ऐसे क्षेत्र में रहना भी पसंद नहीं करते | इसलिए अगर आप पाते है कि जानवर अगर किसी क्षेत्र में स्वाभाविक रूप से रहने से बच रहे है तो आप को ऐसे क्षेत्र में ना तो निवास करना चाहिए ना ही कार्य करना चाहिए |
हालाँकि बहुत सी बार जानवर अपनी इच्छा से अपनी जगह नहीं बदल सकता, खासकर की तब जब वो एक पालतू है तो ऐसे में हम उनके व्यव्हार को देखकर के भी अंदाजा लगाना होता है | जैसे की horses, sheep, cattle, hens or dogs अगर जियोपैथिक स्ट्रेस जोन में रखे जाते है तो वे ऐसे स्थिति में उनका अधिक उतेजित होना , किसी एक जगह पर न ठहर पाना, बीमारी, और प्रजनन क्षमता की कमी को होना जैसे लक्षण इस बात की आशंका पैदा करते है कि वो जियोपैथिक स्ट्रेस जोन में रखे जा रहे है | इसके अलावा कुछ और लक्षण है जिनसे आप जियोपैथिक स्ट्रेस जोन का पता लगा सकते है, जैसे कि –
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डिप्रेशन
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सिरदर्द
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दवाइयों का असर न करना
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बच्चों को सोने में परेशानी होना
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विधुत सम्बन्धी उपकरणों के प्रति संवेदनशीलता
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बगीचे में किसी स्थान पर घास का ना उगना
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दीवारों में दरारों का आना
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पैरासाइट्स, बैक्टीरिया, वायरस की मौजूदगी
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मधुमक्खियों का छत्ता
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सड़क हादसों की अधिकता वाले स्थान
जियोपैथिक स्ट्रेस जोन के लिए उपाय -
जियोपैथिक स्ट्रेस जोन से उत्पन्न नेगेटिव एनर्जी की समस्या का समाधान विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है जैसे कि - उस एनर्जी को अवरुद्ध (block) करके, उसे अवशोषित (absorb) करके, इत्यादि |
जियोपैथिक स्ट्रेस जोन और वास्तु की भूमिका –
हमने जिओपैथिक स्ट्रेस जोन के नकारात्मक प्रभाव तो देखे, लेकिन इस समस्या के प्रभावी समाधान भी उपलब्ध है | यही पर वास्तु शास्त्र की भूमिका और भी बढ़ जाती है | जैसा की आपको पहले भी बताया जा चुका है कि वास्तु शास्त्र हमारे आसपास मौजूद इस जगत की उर्जाओं को संतुलित करने, सामंजस्य बैठाने और किसी भी प्रकार के भवन के अन्दर सकारात्मक उर्जा का प्रवाह सुनिश्चित करने का एक तार्किक विज्ञान है |
जियोपैथिक स्ट्रेस जोन में नेगेटिव एनर्जी का प्रवाह होता है और वास्तु का मूलभूत कार्य घर के अन्दर मौजूद नेगेटिव एनर्जी को निष्क्रिय करना और पॉजिटिव एनर्जी को बढ़ाना होता है | तो निश्चित ही किसी विशेषज्ञ के जरिये वास्तु के सिद्धांतो को घर पर लागू करके इस समस्या से निजात पाया जा सकता है |
अन्य उपाय –
वर्तमान में तकनीक के आधुनिकीकरण के चलते ऐसे उपकरण विकसित कर लिए गए है जिससे इस तरह की उर्जाओं और तरंगो को अस्थायी तौर पर कुछ समय के लिए निष्क्रिय किया जा सकता है | ‘अर्थ एक्युपंक्चर’ भी एक प्रभावी समाधान है हालाँकि यह महंगा भी है | इसके अलावा जियोपैथिक रोड भी आती है जिसके जरिये इस स्ट्रेस जोन की समस्या का काफी हद तक समाधान किया जा सकता है |
अंत में आपको एक बार फिर बता दे कि पृथ्वी से दोनों प्रकार की सकारात्मक और नकारात्मक उर्जायें उत्पन्न होती है जो की हमारे ऊपर प्रभाव डालती है | ये किस हद तक हम पर असर डालेगी ये हमारी रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता और मानसिक क्षमता पर निर्भर करता है |
लेकिन ये निश्चित है की अगर निरंतर इस तरह के क्षेत्र में रहा जाए तो हमारी रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता पर गंभीर असर जरुर पड़ेगा | इसलिए आवश्यक है कि अगर कोई भवन इस तरह के स्ट्रेस जोन में आ रहा हो तो उसका उचित समाधान जरुर किया जाए | इसके लिए आप किसी वास्तु विशेषज्ञ की सहायता ले सकते है |
krishnant girigosavi
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