आपने अपने जीवन में निश्चित ही कभी यह महसूस किया होगा कि आपके घर में किसी एक स्थान या कमरे में आपको किसी अन्य स्थान से बेहतर और आरामदायक महसूस होता है | घर के अलग-अलग स्थान पर सोने पर आपको नींद की गुणवत्ता में भी निश्चित ही अंतर नजर आता होगा | अगर आपने इस बात पर ध्यान नहीं दिया है तो अब दीजिये और आप पायेगें कि सुबह उठने पर आपको किसी एक कमरे में अधिक उर्जा महसूस होगी और कही बहुत तनाव महसूस होगा|
ऐसा ही कुछ पढाई करने वाले बच्चो को भी महसूस होगा कि स्थान विशेष में वे अधिक ध्यान और एकाग्रता से पढ़ पाते है और अन्य स्थान पर उनका मन विचलित होता है | ये सभी इस बात के बेहद सूक्ष्म उदाहरण है कि किस प्रकार घर के अंदर स्थित विभिन्न दिशाएं व ज़ोन्स हमारे अवचेतन मन को प्रभावित करते है | वास्तु में इन ज़ोन्स को 16 भागों में विभाजित किया जाता है | इनमे से प्रत्येक जोन हमारी ज़िन्दगी को बडे पैमाने पर प्रभावित करते है|
यह एक ज्ञात तथ्य है कि भवन निर्माण के विज्ञान वास्तु शास्त्र में दिशाओं का बहुत महत्त्व है | लेकिन आप में से बहुत कम लोग इस बात से परिचित होंगे कि केवल वास्तु शास्त्र ही नहीं बल्कि अन्य कई प्राचीन एवं रहस्यमयी भारतीय शास्त्रों में भी दिशाओं को विशेष महत्त्व दिया गया है | चाहे वो ज्योतिष शास्त्र हो, सांख्य दर्शन हो या फिर कि आयुर्वेद हो सभी में दिशाओं का अत्यधिक महत्त्व है | यहाँ तक कि ताओवादी धर्म पर आधारित लगभग 5 हजार वर्ष पुरानी चीनी भवन निर्माण पद्धति फेंग शुई में भी दिशाओं को खास अहमियत प्रदान की गई है|
तो इससे पहले कि वास्तु शास्त्र के 16 ज़ोन्स और उनका आपकी ज़िन्दगी पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करे हम एक बार संक्षेप में देखेंगे कि किस प्रकार से अन्य शास्त्रों में भी दिशाओं से पड़ने वाले प्रभावों को महत्व दिया गया है–
1- ज्योतिष शास्त्र और दिशाएं–
वैदिक ज्योतिष में प्रत्येक ग्रह एवं राशि को उनके प्रभाव के अनुसार विशेष दिशा प्रदान की गई है | प्रत्येक ग्रह दिशा विशेष में उच्च होता है और अच्छे परिणाम देता है वही दूसरी दिशाओं में या तो उसका प्रभाव सम होता है या नकारात्मक होता है | उदाहरण के लिए आग्नेय (SE) दिशा वीनस यानि कि शुक्र ग्रह की है जो कि अग्नि तत्व, अग्नि तत्व की प्रतीक महिलाओं, वैभव, सौंदर्य, सुरक्षा, कैश फ्लो को दर्शाती है|
यदि इस अग्नि तत्व से सम्बंधित आग्नेय (SE) दिशा में जल तत्व किसी भी रूप में आ जाए जैसे कि सेप्टिक टैंक या अंडरग्राउंड वाटर टैंक (ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पानी चन्द्र ग्रह से सम्बंधित है किन्तु अंडरग्राउंड टैंक शनि को दर्शाता है) का निर्माण करवा लिया है तो फिर घर की महिलाओं को स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या रहेगी, दुर्घटनाएं होगी और कैश फ्लो में कमी आ जायेगी|
अगर आप की जन्म कुंडली में ग्रह विशेष नकारात्मक है तो इस बात की पूरी सम्भावना है कि वास्तु शास्त्र के अनुसार निर्धारित उस ग्रह विशेष से सम्बंधित दिशा में भी वास्तु दोष उत्पन्न हो जाएगा और उसके नकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे | इसे इस तरह से भी देखा जा सकता है कि अगर आपके घर में वास्तु सम्मत होने के चलते एक दिशा विशेष बहुत सकारात्मक परिणाम दे रही है तो निश्चित ही उस दिशा से सम्बंधित ग्रह आपकी कुंडली में सकारात्मक परिणाम प्रदान करे वाला है|
अतः ज्योतिष शास्त्र और वास्तु शास्त्र दोनों ही एक दुसरे के पूरक शास्त्र है जिनमे दिशाओं को विशेष महत्त्व मिला है|
2- सांख्य दर्शन–
भारत की बेहद समृद्ध शास्त्रीय परंपरा में हमें छः दर्शन प्राप्त हुए है | इन छः दर्शनों में सांख्य दर्शन का दृष्टिकोण बहुत वैज्ञानिक है | सांख्य दर्शन के अनुसार त्रिगुणों से इस सृष्टि की रचना हुई है | ये त्रिगुण सत्व, रजस व तमस के रूप में जाने जाते है | ये त्रिगुण सृष्टि की उत्पति से लेकर परमाणु की संरचना तक जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करते है|
प्राचीनकाल में वास्तु ऋषियों व विद्वानों ने इन त्रिगुणों - सत्व, तमस और रजस को विभिन्न दिशाओं से जोड़ा | इन त्रिगुणों को किसी निर्मित भवन में अलग-अलग दिशाओं में विभिन्न अनुपातों में स्थान दिया और उन दिशाओं और उनकी विशेषताओं को इन त्रिगुणों के माध्यम से वर्गीकृत किया|
किसी भी भवन की नैऋत्य दिशा में पृथ्वी तत्व को तामसी माना गया, आग्नेय और वायव्य दिशाओं को रजस गुण प्रधान और जल तत्व से युक्त ईशान दिशा को सत्व गुण से सम्बंधित माना गया | चारों मुख्य दिशाओं पर दो-दो गुणों का सम्मिलित प्रभाव रहता है|
निष्क्रियता, आलस्य, स्थिरता इत्यादि तमस है | रजस तत्व सक्रियता का प्रतीक है | सत्व इन दोनों गुणों का संतुलन होता है | वास्तु सम्मत घर सांख्य दर्शन में वर्णित इन तीनो तत्वों में संतुलन प्रदान करता है|
3- आयुर्वेद-
आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्त और कफ इन त्रिदोषों का सम्बन्ध अलग-अलग दिशाओं से होता है|
-
उत्तर-पश्चिम से पूर्व तक कफ का सम्बन्ध होता है|
-
पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तक पित्त का सम्बन्ध होता है|
-
दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पश्चिम तक वात दोष का क्षेत्र है|
अतः किसी भी घर में इनमे से जिस भी दिशा में वास्तु दोष उपस्थित होगा उसी दिशा से सम्बंधित समस्या (वात, पित्त या कफ) भी उत्पन्न हो जाएगी|
4- फेंग शुई–
भारत के वास्तु शास्त्र के समान चीन में भी प्राचीनकाल में किसी भवन में उर्जाओं के उचित संतुलन को स्थापित करने के लिए फेंग शुई नामक पद्धति का विकास किया गया | फेंग यानी वायु और शुई यानी जल होता है | इसके सिद्धांत भी वातावरण में उपस्थित उर्जाओं के संतुलन पर आधारित है|
फेंग शुई में ये उर्जायें मुख्यतः Yin (नकारात्मक) और Yang (सकारात्मक) में विभाजित है | इन उर्जाओं को विभिन्न दिशाओं में सामंजस्य स्थापित कर अनुकूल किया जाता है | फेंग शुई की आठ मुख्य दिशाएं इस प्रकार है–
-
Sheng Qi
-
Tian Yi
-
Yan Nian
-
Fu Wei
-
Jue Ming
-
Wu Gui
-
Liu Sha
-
Huo Hai
5- वास्तु शास्त्र–
जैसा कि आपने संक्षिप्त में देखा कि विभिन्न प्राचीन कालीन शास्त्रों में दिशाओं और उनसे सम्बंधित उर्जाओं को अत्यधिक महत्व दिया गया है | हालाँकि विभिन्न दिशाओं से पड़ने वाले प्रभावों का जितना विस्तृत और सुक्ष्म वर्णन वास्तु शास्त्र में मिलता है वैसा अन्य किसी शास्त्र में उपलब्ध नहीं है|
किसी जोन या दिशा विशेष में रखी गई वस्तुएं या उसमे होने वाली गतिविधियाँ उस जोन में उपस्थित उर्जा के अनुसार आपके अवचेतन मन को भी प्रभावित करेगी | उदाहरण के लिए अगर आपका बेडरूम पश्चिमी वायव्य में स्थित है जो कि वास्तु के अनुसार डिप्रेशन का जोन है तो ऐसे में आपके अवचेतन में उस स्थान पर उपस्थित उर्जायें डिप्रेशन या अवसाद से सम्बंधित विचार उत्पन्न करेगी और परिणामतः आपके अवचेतन में चलने वाले विचार ऐसी घटनाएं आकर्षित करेंगे जो कि आपको अवसाद यानि कि डिप्रेशन से ग्रस्त कर देगी | क्योंकि आपके विचार ही आपके जीवन की दिशा और दशा तय करते है|
अमेरिका के महानतम दार्शनिकों में से एक रॉल्फ वाल्डो इमर्सन ने कहा था कि “you become what you think all day long” | यानी कि आप वही बन जाते है जिस चीज के बारे में आप निरंतर विचार करते है | इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि आपका घर भी वास्तु में निर्धारित ज़ोन्स के अनुसार बने ताकि सकारात्मक उर्जाये आपके विचारों को भी सकारात्मक दिशा प्रदान कर सके|
गौरतलब है कि वास्तु शास्त्र में सर्वप्रथम चार प्रमुख दिशाओं (North, East, South, West) को चार और अन्य दिशाओं (NE, SE, SW, NW) में विभाजित किया गया और फिर इन्हें भी 8 और दिशाओं में विभाजित कर कुल 16 ज़ोन्स का निर्माण किया गया | इन सभी 16 ज़ोन्स में वास्तु शास्त्र के अनुसार निर्धारित गतिविधियाँ की जाए तभी सर्वश्रेष्ठ परिणाम हासिल होते है | अन्यथा किसी एक जोन विशेष में उसकी प्रकृति के विपरीत गतिविधि करने पर वास्तु दोष उत्पन्न हो जाते है|
तो आइये जानते है कि प्रत्येक जोन के क्या प्रभाव है और उनमे किस प्रकार की गतिविधियाँ करना वास्तु सम्मत होगा–
1- ईशान (NE)–
अवस्थिति –
वास्तु शास्त्र में प्रत्येक घर को 360° डिग्री के अंदर 16 जोन्स या दिशाओं में विभाजित किया जाता है | प्रत्येक जोन 22.5° डिग्री में विस्तारित होता है | हालाँकि आपको गणना में सुविधा हो इसके लिए डिग्रियों का नाप दशमलव में नहीं लिया गया है|
ईशान दिशा –
ईशान दिशा (NE) का विस्तार 34° डिग्री से 56° डिग्री के बीच होता है|
प्रभाव –
मनुष्य का मस्तिष्क इसे अन्य प्राणियों से अलग और बुद्धिमान बनाता है और ईशान दिशा में उपस्थित उर्जा क्षेत्र का सर्वाधिक प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर ही पड़ता है | जब यह दिशा वास्तु सम्मत होती है तो यह आपके अवचेतन मन पर गहरा प्रभाव डालती है | आपके विचारों में स्पष्टता, दूरदर्शिता आती है और नए रचनात्मक विचार जन्म लेते है | यह अध्यात्म के लिहाज से भी बहुत शुभ दिशा है|
हालाँकि जब ईशान (NE) में वास्तु दोष उपस्थित होता है तो कई तरह के नकारात्मक परिणाम भी प्राप्त होते है | यह अनिर्णय की स्थिति, मन में अस्पष्टता का तो कारण बनता ही है साथ ही गंभीर वास्तु दोष होने पर व्यक्ति न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर से भी ग्रस्त हो सकता है|
वास्तु सम्मत गतिविधियाँ–
वास्तु शास्त्र में किसी भूखंड पर उपस्थित खुला हुआ स्थान भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है जितना कि उस भूखंड पर निर्मित भाग | ईशान दिशा सकारात्मक उर्जाओं के प्रवाह का क्षेत्र है अतः इस दिशा को वास्तु में अन्य दिशाओं की अपेक्षा अधिक खुला रखने की सलाह दी जाती है|
इस दिशा में अगर बाग़-बगीचा है तो बहुत अच्छा होगा लेकिन अगर इस स्थान को खुला रखने की गुंजाईश नहीं है तो फिर आप इस स्थान को पूजा स्थल के रूप में भी काम में ले सकते है | पूजा स्थल के लिए यह श्रेष्ठ दिशा है|
वैसे तो पूरा घर ही स्वच्छ होना चाहिए परन्तु घर की इस दिशा की स्वच्छता का विशेष ख्याल रखा जाना चाहिए|
वास्तु विरुद्ध गतिविधियाँ–
जैसा कि आपको बताया गया है कि ईशान दिशा को खुला एवं स्वच्छ रखना वास्तु सम्मत होगा| तो ऐसे में इस दिशा में ऐसा कोई भी निर्माण जो इसे भारी करता हो या कि अस्वच्छ करता हो वास्तु विरुद्ध कहलायेगा | उदाहरण के लिए ईशान में सीढ़ियों का निर्माण इस दिशा को भारी कर देगा तो वही टॉयलेट का निर्माण या डस्टबिन को इस दिशा में रखना भी अनुचित होगा|
2- पूर्वी ईशान (ENE)–
अवस्थिति–
पूर्वी ईशान दिशा (ENE) का विस्तार 56° डिग्री से 79° डिग्री के बीच होता है|
प्रभाव–
किसी विद्वान ने कहा है कि मानसिक शांति प्राप्त करना ही हमारा सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिए और बाकी सारे लक्ष्य इसके अधीन होने चाहिए | और ध्यान देने वाली बात है कि पूर्वी ईशान अगर वास्तु सम्मत हो तो यह हमें मानसिक शांति के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करता है|
चूँकि यह भी ईशान दिशा का ही एक विस्तारित भाग है अतः इसका प्रभाव भी हमारे मन-मस्तिष्क पर पड़ता है | जब भी आपको ऐसा महसूस हो कि जीवन में कुछ भी नया नहीं हो रहा है या एक उदासीनता आ गई है तो इस दिशा का वास्तु एक बार जांच ले|
इस दिशा से घर में प्रवेश करने वाली नैसर्गिक शक्तियां व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक और शुभ विचारों का संचार करती है | वास्तु सम्मत पूर्वी ईशान निवासियों के जीवन को तनावमुक्त करने में बहुत सहयोगी होता है|
वास्तु सम्मत गतिविधियाँ–
इस दिशा में लिविंग रूम का निर्माण किया जा सकता है | इसके अतिरिक्त इस दिशा में बच्चो के खेलने के लिए भी व्यवस्था की जा सकती है | यहाँ पर हरियाली रखना उत्तम रहेगा बशर्ते कि भारी और ऊँचे वृक्ष नहीं लगाये | यहाँ स्थित कमरे में भी एक सुंदर हरे रंग के गमले में रंगीन पौधा लगाया जा सकता है|
वास्तु विरुद्ध गतिविधियाँ–
पूर्वी ईशान में कचरा रखना, डस्टबिन रखना वास्तु विरुद्ध होगा | इस दिशा को ढेर सारे पुराने और कबाड़ के सामानों से भरकर ना रखे|
3- पूर्व (EAST)–
अवस्थिति–
पूर्व दिशा का विस्तार 79° डिग्री से 101° डिग्री के बीच होता है|
प्रभाव–
पूर्व दिशा सूर्य से शासित होती है | वास्तु अनुकूल पूर्व दिशा सामाजिक संपर्कों का विस्तार करती है और उन्हें सशक्त बनाती है|
जीवन में सफलता पाने के लिए सामाजिक संपर्कों का दायरा बड़ा और मजबूत होना आवश्यक है | विशेषकर कि राजनीती, मार्केटिंग, सेल्स, फ़िल्म इंडस्ट्री, व्यापार इत्यादि क्षेत्रों से जुड़े लोगो के लिए पूर्व दिशा का वास्तु के अनुसार बना होना आवश्यक है|
वास्तु अनुकूल नहीं होने पर पूर्व दिशा के नकारात्मक प्रभाव भी पड़ते है | ऐसी परिस्थिति में यह व्यक्ति को अंतर्मुखी बना देती है | लोगों से संपर्क करने की कला नहीं रहती है | परिणामतः सामाजिक संबंधों की भी हानि होती है और अगर आपका व्यवसाय इसी पर आधारित है तो आपको व्यवसाय में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है|
वास्तु सम्मत गतिविधियाँ–
यह दिशा ड्राइंग रूम या बैठक बनाने के लिए बेहतरीन स्थान है | यह ऊपर बताये गए प्रभावों को हासिल करने में बहुत मददगार होगा | इस दिशा में विद्यमान कमरे या दीवार का रंग ग्रीन होना चाहिए | अगर पूर्व में खाली स्थान मौजूद हो तो वहां पर सुंदर हरे रंग के पौधे लगा सकते है जो कि इस दिशा के शुभ प्रभावों में वृद्धि कर देता है|
वास्तु विरुद्ध गतिविधियाँ–
पूर्व में बना टॉयलेट बाहरी दुनिया से आपके संपर्क का दायरा सीमित भी कर देता है और कमजोर भी कर देता है | पूर्व में स्थित दीवार को पश्चिम व दक्षिण की तुलना में भारी व ऊँचा कर देना वास्तु दोष उत्पन्न करता है | पूर्व की दीवार पर हिंसा या नकारात्मक तस्वीरों वाली पेंटिंग्स नहीं लगाये| [ पूर्व मुखी घरों का वास्तु जानने के लिए इस लिंक पर Click करें - @East-Facing-House ]
4- पूर्वी आग्नेय (ESE)–
अवस्थिति–
पूर्वी आग्नेय दिशा का विस्तार 101° डिग्री से 124° डिग्री के बीच होता है|
प्रभाव–
अनुकूल होने पर पूर्वी आग्नेय व्यक्ति की विश्लेषण या एनालिसिस करने की क्षमता को बढ़ा देता है और उसके विचारों को अधिक परिष्कृत बनाता है व उसे गहराई प्रदान करता है | जीवन में छोटे-बडे निर्णय लेने के लिए व्यक्ति में परिस्थितियों का विश्लेषण करने की क्षमता होना बेहद आवश्यक है | विश्लेषण करने की क्षमता के अभाव में अक्सर लोग गलत निर्णय ले लेते है | ऐसे में यह जोन अगर वास्तु अनुसार बना हो तो आपको विश्लेषण या एनालिसिस करने की अद्भुत क्षमता प्रदान करता है|
वही अगर स्थिति विपरीत हो तो निरंतर मन में अनावश्यक विचार दौड़ते रहते है जिन पर वास्तविकता में कभी अमल नहीं किया जाता | विवेकहीन निर्णय लेना इसी वास्तु दोष का एक दुष्परिणाम है|
वास्तु सम्मत गतिविधियाँ –
पूर्वी आग्नेय में कपडे धोने के लिए वाशिंग मशीने रखी जा सकती है | इसके अलावा मिक्सी और जूसर भी इस दिशा में काम लेने के लिए उपयुक्त है|
वास्तु विरुद्ध गतिविधियाँ –
पूर्वी आग्नेय सोने के लिए या बेडरूम के लिए बिलकुल अनुपयुक्त है फिर चाहे वो बच्चों का हो या मास्टर बेडरूम हो | यहाँ पर टॉयलेट निर्मित करने पर यह आपके एनालिसिस की क्षमता पर प्रतिकूल असर डालता है और आप सही निर्णय नहीं ले पाते है|
5- आग्नेय (SE)–
अवस्थिति–
आग्नेय दिशा का विस्तार 124° डिग्री से 146° डिग्री के बीच होता है|
प्रभाव–
अगर आप घर में कैश या पैसों की कमी से जूझ रहे है, अगर नगदी का प्रवाह रुका हुआ गई, अगर आपका पैसा कही अटका हुआ है तो आग्नेय कोंण आपके लिए अति महत्वपूर्ण दिशा है | यह घर में Liquid Cash के सकारात्मक प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए सबसे अहम दिशा है | वास्तु अनुकूल होने पर इस दिशा में उपस्थित उर्जा व्यक्ति में जोश और साहस का संचार भी करती है|
आग्नेय में वास्तु दोष की उपस्थिति होने पर आपके पास नगदी या कैश की कमी हो जायेगी | आपको दुर्घटनाओं का भी सामना करना पड़ सकता है | आपमें असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो सकती है|
वास्तु सम्मत गतिविधियाँ–
अग्नि तत्व से सम्बंधित गतिविधियाँ इसी दिशा में करना सर्वोत्तम होता है | जैसे कि घर में किचन का निर्माण करना हो तो आग्नेय दिशा श्रेष्ठ है | इसके अलावा इस दिशा के लिए वास्तु के अनुसार रेड कलर किया जाना चाहिए | हालाँकि बेहतर होगा कि रेड कलर बहुत ज्यादा डार्क या गहरा नहीं हो क्योंकि यह कलर स्वाभाव में आक्रामकता बढाता है | ऐसे में रेड कलर का हल्का शेड प्रयोग में ले या हल्का पिंक कलर भी इस्तेमाल कर सकते है|
वास्तु विरुद्ध गतिविधियाँ–
आग्नेय दिशा में अंडरग्राउंड वाटर टैंक या सेप्टिक टैंक की उपस्थिति प्रतिकूल होती है क्योंकि अग्नि तत्व सम्बन्धी दिशा में इसके विपरीत तत्व जल तत्व की उपस्थिति हो जाती है जिसका अशुभ परिणाम होते है | इसके अलावा इस दिशा में गड्ढे की उपस्थिति भी वास्तु दोष का कारण बनती है|
6- दक्षिणी आग्नेय (SSE)–
अवस्थिति–
दक्षिणी आग्नेय दिशा का विस्तार 146° डिग्री से 169° डिग्री के बीच होता है|
प्रभाव–
वास्तु अनुकूल दक्षिणी आग्नेय व्यक्ति को आत्मविश्वास और शक्ति देता है | कई बार देखा जाता है कि इंसान में प्रतिभा होने के बावजूद भी उसमे आत्मविश्वास की कमी रहती है और कुछ लोगो में तुलनात्मक रूप से कम प्रतिभा होने पर भी उनमे अति आत्मविश्वास होता है | यह दोनों ही स्थितियां दक्षिणी आग्नेय के वास्तु अनुकूल या प्रतिकूल होने पर देखी जाती है|
अब चाहे आप किसी नए व्यापार या नौकरी को शुरू करने जा रहे है, चाहे आपका व्यवसाय का सम्बन्ध लोगो से कम्युनिकेशन करने का हो या लीडरशिप का, आपमें आत्मविश्वास और शक्ति का होना बेहद जरुरी है|
यहाँ पर वास्तु दोष की उपस्थिति आपको आलस्य का, मानसिक रूप से कमजोरी का, उर्जा व उत्साह की कमी का अनुभव करेंगे|
वास्तु सम्मत गतिविधियाँ–
इस क्षेत्र में आप रसोई का निर्माण कर सकते है | इसके अतिरिक्त आप इसमें बेडरूम का भी निर्माण कर सकते है जो कि आपके अवचेतन मन पर बहुत सकारात्मक असर डालेगा और आपको आत्मविश्वास देगा|
वास्तु विरुद्ध गतिविधियाँ –
इस दिशा को कचरे और अस्वच्छता से मुक्त रखे | यहाँ पर डस्टबिन, बेकार का सामान नहीं रखे | इसके अतिरिक्त इसमें ब्लू कलर करना भी वास्तु के प्रतिकूल होगा|
इस आर्टिकल में 1 से लेकर 6 जोन तक के बारे में आपको जानकारी दी गई है| [ 7 वे जोन से लेकर 16 वे जोन तक के बारे में पढने के लिए इस लिंक पर Click करे - @16-Vastu-Zones-Part-2 ]
Ram karan
Very helpful aapshree ko Koti Koti naman